#घर_में रहते हुए हिन्दी बोलने का प्रयास करें...ये वो उर्दू के शब्द जो आप_हम प्रतिदिन प्रयोग करते हैं, इन शब्दों को त्याग कर मातृभाषा का प्रयोग करें... उर्दू हिंदी01 ईमानदार - निष्ठावान02 इंतजार - प्रतीक्षा03 इत्तेफाक - संयोग04 सिर्फ - केवल, मात्र05 शहीद - बलिदान06 यकीन - विश्वास, भरोसा07 इस्तकबाल - स्वागत08 इस्तेमाल - उपयोग, प्रयोग09 किताब - पुस्तक10 मुल्क - देश11 कर्ज़ - ऋण12 तारीफ़ - प्रशंसा13 तारीख - दिनांक, तिथि14 इल्ज़ाम - आरोप15 गुनाह - अपराध16 शुक्रीया - धन्यवाद, आभार17 सलाम - नमस्कार, प्रणाम18 मशहूर - प्रसिद्ध19 अगर - यदि20 ऐतराज़ - आपत्ति21 सियासत - राजनीति22 इंतकाम - प्रतिशोध23 इज्ज़त - मान, प्रतिष्ठा24 इलाका - क्षेत्र25 एहसान - आभार, उपकार26 अहसानफरामोश - कृतघ्न27 मसला - समस्या28 इश्तेहार - विज्ञापन29 इम्तेहान - परीक्षा30 कुबूल - स्वीकार31 मजबूर - विवश32 मंजूरी - स्वीकृति33 इंतकाल - मृत्यु, निधन 34 बेइज्जती - तिरस्कार35 दस्तखत - हस्ताक्षर36 हैरानी - आश्चर्य37 कोशिश - प्रयास, चेष्टा38 किस्मत - भाग्य39 फै़सला - निर्णय40 हक - अधिकार41 मुमकिन - संभव42 फर्ज़ - कर्तव्य43 उम्र - आयु44 साल - वर्ष45 शर्म - लज्जा46 सवाल - प्रश्न47 जवाब - उत्तर48 जिम्मेदार - उत्तरदायी49 फतह - विजय50 धोखा - छल51 काबिल - योग्य52 करीब - समीप, निकट53 जिंदगी - जीवन54 हकीकत - सत्य55 झूठ - मिथ्या, असत्य56 जल्दी - शीघ्र57 इनाम - पुरस्कार58 तोहफ़ा - उपहार59 इलाज - उपचार60 हुक्म - आदेश61 शक - संदेह62 ख्वाब - स्वप्न63 तब्दील - परिवर्तित64 कसूर - दोष65 बेकसूर - निर्दोष66 कामयाब - सफल67 गुलाम - दास68 जन्नत -स्वर्ग 69 जहन्नुम -नर्क70 खौ़फ -डर71 जश्न -उत्सव72 मुबारक -बधाई/शुभेच्छा73 लिहाजा़ -इसलीए74 निकाह -विवाह/शादि75 आशिक -प्रेमी 76 माशुका -प्रेमिका 77 हकीम -वैध78 नवाब -राजसाहब79 रुह -आत्मा 80 खु़दकुशी -आत्महत्या 81 इज़हार -प्रस्ताव82 बादशाह -राजा/महाराजा83 ख़्वाहिश -महत्वाकांक्षा84 जिस्म -शरीर/अंग85 हैवान -दैत्य/असुर86 रहम -दया87 बेरहम -बेदर्द/दर्दनाक88 खा़रिज -रद्द89 इस्तीफ़ा -त्यागपत्र 90 रोशनी -प्रकाश 91मसीहा -देवदुत92 पाक -पवित्र93 क़त्ल -हत्या 94 कातिल -हत्यारा95 मुहैया - उपलब्ध96 फ़ीसदी - प्रतिशत97 कायल - प्रशंसक98 मुरीद - भक्त99 कींमत - मूल्य (मुद्रा में)100 वक्त - समय101 सुकून - शाँति102 आराम - विश्राम103 मशरूफ़ - व्यस्त104 हसीन - सुंदर105 कुदरत - प्रकृति106 करिश्मा - चमत्कार107 इजाद - आविष्कार108 ज़रूरत - आवश्यक्ता109 ज़रूर - अवश्य110 बेहद - असीम111 तहत - अनुसारइनके अतिरिक्त हम प्रतिदिन अनायास ही अनेक उर्दू शब्द प्रयोग में लेते हैं ! कारण है ये बॉलीवुड और मीडिया जो एक इस्लामी षड़यंत्र के अनुसार हमारी मातृभाषा पर ग्रहण लगाते आ रहे हैं।जय श्री राम 🚩🚩

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घर के अंदर सिर्फ दिल लेकर जाएं और अपने मन परमात्मा की ओर ले जाएं। शांति और सुख अपने घर के अंदर ही मौजूद होता है। लघु भावनाओं से सजे मंदिर में बैठे, ध्यान में जाएं और उस सुखद स्थिति का मजा लें जो केवल घऱ की शांति दे सकती है। #गहनसचेतनताकेरंगमें #प्रभुकेचरणोंमें #घरकेअंदरकेशांति #रविवारकेदिन #पुजाकावक्त्र #सदासुखीहो

संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ...?अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण उन्हों ने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर वे गदगद हो गये। वे सोचने लगे। यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता...???बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मै न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं।आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है की उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा।जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ?