भगवान् के लिए रोना कैसे आये? रोना तब आता है जब हम परमात्मा के लिए अति व्याकुल हो जाएँ। व्याकुलता आती है तब जब उनके बिना रहा न जाये। उनके बिना कब रहा नहीं जायेगा? जब यह एहसास होगा कि संसार में उनके सिवाय मेरा और कोई है ही नहीं। मैं यहाँ नितांत अकेला हूँ। एक वो ही मेरे हैं। केवल एक भगवान ही अपने तब लगेंगे जब संसार का दूसरा कोई भी व्यक्ति अपना नहीं लगेगा। जब तक संसार में एक भी व्यक्ति में अपनापन है तब तक भगवान् के लिए व्याकुलता आएगी ही नहीं। "मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई" हम लोग इसपे तो ध्यान देते हैं कि "मेरे तो गिरिधर गोपाल" परंतु उसके बाद के शब्द "दूसरो न कोई" पे ध्यान नहीं देते। "दूसरो न कोई" पे ध्यान देना है। इसको धारण करना है जीवन में। तभी गिरिधर गोपाल सच में अपने लगेंगे। इसीलिए जब संसार के लोग हमें दुःख दे, अपमान करें, तब इसमें प्रभु की असीम कृपा देखनी चाहिए कि वह हमें स्मरण करा रहे हैं कि संसार में कोई अपना नहीं है। जब तक दूसरों से सुख मिलता रहता है तब तक उनसे अपनापन नहीं छूटता। अपनापन तो दुःख में ही मिट सकता है। जब दुःख आये तब यह याद रखें की संसार में कोई अपना नहीं। ऐसा करना दुःख का सदुपयोग करना है। संसारी व्यक्ति तो दुःख का भोग करते हैं। परंतु साधक दुःख का सदुपयोग करे।


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घर के अंदर सिर्फ दिल लेकर जाएं और अपने मन परमात्मा की ओर ले जाएं। शांति और सुख अपने घर के अंदर ही मौजूद होता है। लघु भावनाओं से सजे मंदिर में बैठे, ध्यान में जाएं और उस सुखद स्थिति का मजा लें जो केवल घऱ की शांति दे सकती है। #गहनसचेतनताकेरंगमें #प्रभुकेचरणोंमें #घरकेअंदरकेशांति #रविवारकेदिन #पुजाकावक्त्र #सदासुखीहो

संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ...?अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण उन्हों ने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर वे गदगद हो गये। वे सोचने लगे। यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता...???बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मै न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं।आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है की उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा।जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ?