गिलहरी का अनीति से युद्ध...राम रावण युद्ध की तैयारी का सारा दृश्य एक पेड़ पर बैठी हुई गिलहरी देख रही थी। रावण की अनीति और सीता हरण की गाथा भी उसने सुन रखी थी। इस धर्मयुद्ध में वह राम की विजय के लिये भगवान से प्रार्थना कर रही थी।सद्भाव और प्रार्थना ही तो सब कुछ नहीं है। पुरुषार्थ भी तो सत्प्रयोजन में करना चाहिए। रीछ, वानर तक जब अपनी जान की बाजी लगा रहे थे तो गिलहरी ने सोचा उसे भी तो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप कुछ करना चाहिए। यही चिंतन उसके मन में चल रहा था। सीता को रावण के हाथ से छुड़ाने के लिए गिद्ध जटायु अपने प्राण दे चुका था। अनीति करने वाले दानव से लड़ना अपनी जान को जोखिम में डालना है ! जटायु अपनी और रावण की शक्ति के अन्तर को जानता था तो भी वह लड़ा, उसने कायरता नहीं दिखाई। अन्याय देखते रहने की अपेक्षा अनीति से जूझने में उसने आदर्श का परिपालन समझा और रावण से लड़ते हुए ही अन्ततः जटायु ने अपने प्राण दिये।गिलहरी को यह आदर्श मन को अच्छा लगा । सोचने लगी, वह भी इस धर्म युद्ध में सहयोग देने के लिए पीछे न रहेगी, भले ही वह योगदान स्वल्प ही क्यों न हो?गिलहरी को एक सूझ सूझी। वह लंका पहुँचने तक का रास्ता बनाने के लिए समुद्र को उथला बनाने की बात सोचने लगी। बालों में बालू भरती और उसे समुद्र में झाड़ देती। लगातार वह इसी काम में लगी रहती। शरीर छोटा था। साधन स्वल्प थे। पर उसकी हिम्मत अटूट थी, जो बन पड़े सो नीति के समर्थन में करना ही चाहिए। यह लगन उसे पूरी तरह लगी हुई थी।गिलहरी का पुरुषार्थ आश्चर्यजनक था। राम की दृष्टि उस पर पड़ी। साधन स्वल्प, पर पुरुषार्थ महान। यह दृश्य देखकर राम पुलकित हो उठे।उन्होंने गिलहरी के समीप जाकर उसके साहस को देखा और भावपूर्वक उसे हाथ में उठा लिया। हथेली पर बिठाया और दूसरे हाथ की उंगलियाँ अत्यन्त स्नेहपूर्वक उसकी पीठ पर सहलाने लगे। गिलहरी ने भी अपने को धन्य माना। वह छोटी है तो क्या पर उसकी हिम्मत और भावना तो ऊंची मानी गई। सराही गई।राम सांवले थे, उनकी उंगलियाँ भी वैसी ही थी। पीठ पर हाथ फेरते रहने से गिलहरी की पीठ पर काली धारियाँ बन गई। कालांतर में उसके वंशजों की पीठ पर वह काली धारियाँ बनती चली आई। राम (धर्म ) के प्रति कृतज्ञता का चिन्ह उस वर्ग के प्राणियों की पीठ पर अभी भी अंकित पाया जाता है।माना जाता है कि यह तीन रेखाएं रामजी, लक्षमण जी और सीता जीकी प्रतीक है।🙏🏻

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घर के अंदर सिर्फ दिल लेकर जाएं और अपने मन परमात्मा की ओर ले जाएं। शांति और सुख अपने घर के अंदर ही मौजूद होता है। लघु भावनाओं से सजे मंदिर में बैठे, ध्यान में जाएं और उस सुखद स्थिति का मजा लें जो केवल घऱ की शांति दे सकती है। #गहनसचेतनताकेरंगमें #प्रभुकेचरणोंमें #घरकेअंदरकेशांति #रविवारकेदिन #पुजाकावक्त्र #सदासुखीहो

संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ...?अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण उन्हों ने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर वे गदगद हो गये। वे सोचने लगे। यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता...???बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मै न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं।आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है की उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा।जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ?