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अर्जन और विसर्जन ये मनुष्य जीवन के दो अहम पहलू हैं। अगर जीवन को ठीक तरह से समझा जाये तो वो ये कि यहाँ अर्जन है तो विसर्जन भी है और विसर्जन है तो अर्जन भी अवश्यमेव है।वृक्ष कभी इस बात पर व्यथित नहीं होता है कि उसने कितने फूल अथवा कितने पत्ते खो दिये। वह सदैव नये फूल और पत्तों के सृजन में व्यस्त रहता है।नदियां भी कभी इस बात का शोक नहीं करती है कि प्रतिपल कितना कितना जल प्रवाहित हो गया। वो सदैव उसी वेग में लोक मंगल हेतु प्रवाहमान बनी रहती है। उन्हें भी पता होता है कि हम जितना देंगे , उतना ही हमें ईश्वर द्वारा और ज्यादा दे दिया जायेगा।जीवन में कितना कुछ खो गया, इस पीड़ा को भूलकर हम क्या नया कर सकते हैं इसी में जीवन की प्रगति और श्रेष्ठता है।जीवन में जब तक पुराना नहीं जाता है तब तक नयें आने की संभावनाएं भी नगण्य रहती हैं।अगर जीवन से कुछ जा रहा है तो चिंता मत करो अपितु ये भाव रखो कि वो ईश्वर जरूर हमें कुछ नया देने की, कुछ और बेहतर देने की तैयारी कर रहा है। हरे कृष्ण--------
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