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आँसू....परमात्मा के लिए आपकी सहज और निर्मल प्रार्थना हैं। अगर आप खुलकर हृदय से परमात्मा के लिए रो लेते हैं तो समझिये इससे आगे और कुछ नहीं चाहिये उसको रिझाने के लिए । परमात्मा भाव देखता है शब्द नहीं।फिर एक दिन रोते-रोते हँसना आ जाता है । आँसुओं से बड़ी और कोई प्रार्थना नहीं है । इसलिए हृदय पूर्वक रोइये। आँसु निखारेंगे आपको, बुहारेंगे आपको जो व्यर्थ है वह बाहर निकल जाएगा । जो सार्थक है, निर्मल है, वह स्फटिक मणि की भांति स्वच्छ होकर भीतर जगमगाने लगेगा...।
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