हम गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ? ( पढ़ने के बाद चिल्लाना अवश्य भूल जाओगे ) एक बार एक सन्त अपने शिष्यों के साथ बैठे थे,अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा । बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर जोर से चिल्लाते क्यों हैं ?शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शान्ति खो चुके होते हैं, इसलिए चिल्लाने लगते हैं । संत ने मुस्कराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे धीरे भी तो बात कर सकते हैं ।आखिर वे चिल्लाते क्यों हैं? कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया , लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया ।वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ जाती है ,जब दूरियां बढ़ जाय तो आवाज को पहुँचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है । दूरियां जितनी ज्यादा होंगी ,उतना तेज चिल्लाना पड़ेगा ।दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साये लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती है । वह आगे बोले : जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और बड़े धीरे धीरे बात करते हैं । प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुँचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं । जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ होता है तो वह फुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुँचा लेते हैं । इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि फुसफुसाने की भी जरूरत नहीं पड़ती ।एक दूसरे की आंखों में देखकर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है ।शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें । शान्त चित और धीमी आवाज में ही बात करें ।ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ जाए कि वापस आना मुमकिन न हो ,।। जय श्री कृष्णा |

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घर के अंदर सिर्फ दिल लेकर जाएं और अपने मन परमात्मा की ओर ले जाएं। शांति और सुख अपने घर के अंदर ही मौजूद होता है। लघु भावनाओं से सजे मंदिर में बैठे, ध्यान में जाएं और उस सुखद स्थिति का मजा लें जो केवल घऱ की शांति दे सकती है। #गहनसचेतनताकेरंगमें #प्रभुकेचरणोंमें #घरकेअंदरकेशांति #रविवारकेदिन #पुजाकावक्त्र #सदासुखीहो

संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ...?अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण उन्हों ने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर वे गदगद हो गये। वे सोचने लगे। यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता...???बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मै न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं।आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है की उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा।जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ?