बरसाने में एक संत किशोरी जी का बहुत भजन करते थे और रोज ऊपर दर्शन करने जाते राधा रानी के महल में। बड़ी निष्ठा, बड़ी श्रद्धा थी किशोरी जी के चरणों में उन संत की।.एक बार उन्होंने देखा की भक्त राधा रानी को बरसाने मन्दिर में पोशाक अर्पित कर रहे थे....तो उन महात्मा जी के मन में भाव आया की मैंने आज तक किशोरी जी को कुछ भी नहीं चढ़ाया...जय श्री राधे! जय श्री कृष्ण!!.और लोग आ रहे है तो कोई फूल चढ़ाता है, कोई भोग लगाता है, कोई पोशाक पहनाता है और मैंने कुछ भी नही दिया, अरे मै कैसा भगत हूँ ?.तो उन महात्मा जी ने उसी दिन निश्चय कर लिया कि मैं अपने हाथों से बनाकर राधा रानी को सुंदर सी एक पोशाक पहनाऊंगा....ये सोचकर उसी दिन से वो महात्मा जी तैयारी में लग गए और बहुत प्यारी सुंदर सी एक पोशाक बनाई,.पोशाक तैयार होने में एक महीना लगा। कपड़ा लेकर आयें, अपने हाथों से गोटा लगाया और बहुत प्यारी पोशाक बनाई।.सूंदर सी पोशाक जब तैयार हो गई तो वो पोशाक अब लेकर ऊपर किशोरी जी के चरणों में अर्पित करने जा रहा थे।.अब बरसाने की तो सीढिया हैं काफी ऊँची तो वो महात्मा जी उपर चढ़कर जा रहे है तो देखियें कैसे कृपा करती है वो हमारी राधा रानी....आधी सीढियों तक ही पहुँचें होंगे महात्मा जी की तभी बरसाने की एक छोटी सी लड़की उस महात्मा जी को बोलती है कि बाबा ये कहाँ ले जा रहे हो आप ? आपके हाथ में ये क्या है ?.वो महात्मा जी बोले की लाली ये मै किशोरी जी के लिए पोशाक बना के उनको पहनाने के लिए ले जारयो हूँ, बृज भाषा में जबाब दिया।.वो लड़की बोली अरे बाबा राधा रानी पे तो बहोत सारी पोशाक हैं, तो तू ये मोकू देदे ना ....तो महात्मा जी बोले कि बेटी तोकू मै दूसरी बाजार से दिलवा दूंगा। ये तो मै अपने हाथ से बनाकर राधा रानी के लिये लेकर जारयो हूँ तोकू और दिलवा दूँगो।.लेकिन उस छोटी सी बालिका ने उस महात्मा का दुपट्टा पकड़ लिया ....बाबा ये मोकू देदे पर सन्त भी जिद करने लगे की दूसरी दिलवाऊंगा, ये नहीं दूंगा। लेकिन वो बच्ची भी इतनी तेज थी... की संत के हाथ से छुड़ाकर पोशाक ले भागी,.अब महात्मा जी बहुत दुखी हो गए, बूढ़े महात्मा जी अब कहाँ ढूंढे उसको, तो वही सीढियो पर बैठकर रोने लगे ....जब कई संत मंदिर से निकले तो पूछा महाराज क्यों रो रहे हो ? तो सारी बात बताई की जैसे-तैसे तो बुढ़ापे में इतना परिश्रम करके ये पोशाक बनाकर लाया राधा रानी को पहनाता पर वासे पहले ही एक छोटी सी लाली लेकर भाग गई तो क्या करु मै अब ?.वो बाकी संत बोले अरे अब गई तो गई कोई बात नहीं अब कब तक रोते रहोगे चलो ऊपर दर्शन कर लो।.रोना बन्द हुआ लेकिन मन ख़राब था क्योंकि कामना पूरी नहीं हुई तो अनमने मन से राधा रानी का दर्शन करने संत जा रहे थे ....और मन में ये ही सोच रहे है की मुझे लगता है की किशोरी जी की इच्छा नहीं थी , शायद राधा रानी मेरे हाथो से बनी पोशाक पहनना ही नहीं चाहती थी, ऐसा सोचकर बड़े दुःखी होकर जा रहे है।.और अब जाकर अंदर खड़े हुए दर्शन खुलने का समय हुआ और जैसे ही श्री जी का दर्शन खुला, पट खुले तो वो महात्मा क्या देख रहें है कि ....जो पोशाक वो बालिका लेकर भागी थी वो ही पोशाक पहनकर मेरी राधा रानी बैठी हुई है, उसी वस्त्र को धारण करके किशोरी जी बैठी है।.ये देखते ही महात्मा की आँखों से आँसू बहने लगे और महात्मा बोले कि...किशोरी जी मै तो आपको देने ही ला रहा था लेकिन आपसे इतना भी सब्र नहीं हुआ मेरे से छीनकर भागी आप तो।.किशोरी जी ने कहा की बाबा ये केवल वस्त्र नहीं, ये केवल पोशाक नहीं है या में तेरो प्रेम छुपो भयो है और प्रेम को पाने के लिए तो दौड़ना ही पड़ता है, भागना ही पड़ता है।.ऐसी है हमारी राधा रानी प्रेम प्रतिमूर्ति, प्रेम की अद्भुत परिभाषा है।

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*ताला चाबी से भी खुलता है और हथौड़ा से भी। लेकिन चाबी से खुला ताला बार-बार काम आता है और हथौड़ा से खुला ताला केवल एक बार।* *संबन्धों के ताले को क्रोध के हथौड़े से नहीं बल्कि प्रेम की चाबी से खोलें।*

🏵️ रावण के पैर के नीचे का आध्यात्मिक रहस्य 🏵️👉रामायण देख रहे हमारे कई पाठकों के कई प्रश्नों में से एक अहम प्रश्न है कि रावण का जब सिंघासन दिखाया जाता गई,तो रावण के पैरों के पास कोई लेटा रहता है, जिस पर रावण पैर रखता है, वो कौन है ? और रावण के पैरों के नीचे क्यो रहता है ?तो आइए इस प्रश्न के उत्तर को शनि संहिता के अनुसार जानने का प्रयास करते हैं ।कथा के अनुसार लंका का राजारावण निःसंदेह एक महान योद्धा था। उसने अपने शासन में सातों द्वीपों को जीत लिया था। उसे ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था। उसने देवताओं को परास्त किया और नवग्रह उसके राजसभा की शोभा बढ़ाते थे। यहाँ तक कि वो शनि के सर पर अपना पैर रख कर बैठा करता था। यहाँ तक कि उसने भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। उसका वीर रूप ऐसा था कि उसके साथ अपने अंतिम युद्ध करते समय स्वयं श्रीराम ने कहा था कि आज रावण जिस रौद्ररूप में है कि उसे पराजित करना समस्त देवताओं के साथ स्वयं देवराज इंद्र के लिए भी संभव नहीं है। अपने अहंकार के मद में रावण ने शनि लोक पर चढ़़ाई कर दी और शनिदेव को महाकाल सहित बंदी बना लिया । उसने दोनों को अपने कारावास/पैरों में उलटा लटका कर बंदी बना लिया। वे दोनों अश्रु्धारा बहाते हुए अपने प्रभु शिव का स्मरण करने लगे तब भगवान शिव अपने भक्तों की करुण पुकार सुनकर प्रकट हुए और दोनों को आश्वस्त किया कि वे शीघ्र ही हनुमान के रुप में उनका उद्धार करने आएगें । इ्धर जब रावण का अत्याचार बढ़ने लगा तो भगवान विष्णु ने उसका संहार करने के लिए राम के रुप में और लक्ष्मी ने पृथ्वीपुत्री सीता के रुप में अवतार लिया । कालांतर में जब राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने हेतु वनवास लिया तो उनके साथ पृथ्वीपुत्री सीता व अनुज लक्ष्मण वन में रहने लगे।एक दिन रावण की बहन शूर्पनखा वहां आई और अपनी राक्षसी माया फैला कर राम- लक्ष्मण को यु़द्ध के लिए प्रेरित किया । यु़द्ध में रावण के खर, दुषण व त्रिशिरा जैसे शुरमा मारे गए। बदले की भावना से रावण ने सीता का छल से अपहरण कर लिया और लंका में अशोक वाटिका में छुपाकर रख दिया। उन्हीं दिनों राम- लक्ष्मण की भेंट रुद्रावतार हनुमान से हुई और फिर सीता की खोज शुरु हुई। हनुमान सीता की खोज के लिए समुद्र पार करके लंका में प्रवेश किया और अशोक वाटिका में छुपाकर रखी सीता को खोज निकाला । सीता से मिलने के बाद हनुमान ने अशोक वाटिका फल खाने लगे और विनाश मचा दिया । हनुमान को रोकने के लिए रावण ने अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा । लेकिन हनुमान ने अक्षय कुमार को मार डाला । अंत में मेघनाद ने हनुमान को ब्रह्रापाश में जकड़कर रावण के समक्ष उपसिथत कर दिया और रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी । हनुमान जी ने अपनी पूंछ से लंका का वि्ध्वंस कर दिया । लेकिन हनुमान जी ने देखा लंका जलने पर भी श्याम वर्ण नहीं हुई । तभी उनकी दॄष्टि रावण के कारावास/पैरों में उलटे लटके शनिदेव पर पड़ी । तब शनिदेव ने अपनी व्यथा हनुमान जी को सुनाई और रावण ने उनकी शक्ति को भी कीलित कर दिया है। हनुमान जी ने शनिदेव को मुक्त कर उनकी शक्ति का उत्कीलन कर दिया ।उलटि पलटि लंका सब जारि। फिर तो हनुमान जी के प्रताप व शनिदेव की दॄष्टि पड़ने पर लंका जल कर राख हो गई।इसके बाद राम- रावण यु़द्ध में रावण का अपने वंश सहित विनाश हो गया । बाद में हनुमान जी ने महाकाल और शनिदेवता को रावण के चंगुल से मुक्त करा दिया। हालांकि कुछ विद्वानों का मत है कि शनिदेव को संपूर्ण मुक्ति रावण की मृत्यु के बाद ही मिली थी ।तब शनिदेव हनुमान जी से बोले , “हे महावीर ! मैं आपका सदा ऋणी रहुंगा।” तब हनुमान जी ने शनिदेव दिव्य दॄष्टि प्रदान कर अपने रुद्र रुप के दर्शन कराये। उस समय शनिदेव ने हनुमान जी के चरण पकड़ लिए और प्रेम के अश्रु बहाने लगे। शनिदेव ने हनुमान जी से कहा कि प्रभु मैं आपके भक्तों को कभी भी पीडि़त नहीं करुंगा । जो मनुष्य इस कथा पढ़ेगा या श्रवण करेगा, मैं सदा उसकी रक्षा करुंगा।जय शनिदेव 🚩जय बजरंग बली 🚩जय श्रीराम 🚩प्रेम से बोलिये जय श्री राम

संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ...?अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण उन्हों ने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर वे गदगद हो गये। वे सोचने लगे। यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता...???बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मै न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं।आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है की उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा।जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता ?