मैंने दुकान के अंदर देखा जगह-जगह देवदूत खड़े थे
*सत्संग की दुकान...-*
एक दिन मैं सड़क से जा रहा था, रास्ते में एक जगह बोर्ड लगा था, ईश्वरीय किराने की दुकान...
मेरी जिज्ञासा बढ़ गई क्यों ना इस दुकान पर जाकर देखूं इसमें बिकता क्या है?
जैसे ही यह ख्याल आया दरवाजा अपने आप खुल गया, जरा सी जिज्ञासा रखते हैं तो द्वार अपने आप खुल जाते हैं, खोलने नहीं पड़ते, मैंने खुद को दुकान के अंदर पाया...
मैंने दुकान के अंदर देखा जगह-जगह देवदूत खड़े थे, एक देवदूत ने मुझे टोकरी देते हुए कहा, मेरे बच्चे ध्यान से खरीदारी करना, यहां सब कुछ है जो एक इंसान को चाहिए है...
देवदूत ने कहा एक बार में टोकरी भर कर ना ले जा सको, तो दोबारा आ जाना फिर दोबारा टोकरी भर लेना...
अब मैंने सारी चीजें देखी, सबसे पहले *धीरज* खरीदा, फिर *प्रेम*, फिर *समझ*, फिर एक दो डिब्बे *विवेक* के भी ले लिए...
आगे जाकर *विश्वास* के दो तीन डिब्बे उठा लिए, मेरी टोकरी भरती गई...
आगे गया *पवित्रता* मिली सोचा इसको कैसे छोड़ सकता हूं, फिर *शक्ति* का बोर्ड आया शक्ति भी ले ली..
*हिम्मत* भी ले ली सोचा हिम्मत के बिना तो जीवन में काम ही नहीं चलता...
थोड़ा और आगे *सहनशीलता* ली फिर *मुक्ति* का डिब्बा भी ले लिया...
मैंने वह सब चीजें खरीद ली जो मेरे प्रभुजी मालिक को पसंद है, फिर एक नजर *प्रार्थना* पर पड़ी मैंने उसका भी एक डिब्बा उठा लिया..
वह इसलिए कि सब गुण होते हुए भी अगर मुझसे कभी कोई भूल हो जाए तो मैं प्रभु से प्रार्थना कर लूंगा कि मुझे भगवान माफ कर देना...
आनंदित होते हुए मैंने बास्केट को भर लिया, फिर मैं काउंटर पर गया और देवदूत से पूछा, सर.. मुझे इन सब समान का कितना बिल चुकाना होगा...
देवदूत बोला मेरे बच्चे यहां बिल चुकाने का ढंग भी ईश्ववरीय है, *अब तुम जहां भी जाना इन चीजों को भरपूर बांटना और लुटाना, जो चीज जितनी ज्यादा तेजी से लूटाओगे, उतना तेजी से उसका बिल चुकता होता जाएगा और इन चीजों का बिल इसी तरह चुकाया किया जाता है...*
कोई- कोई विरला इस दुकान पर प्रवेश करता है, जो प्रवेश कर लेता है वह माला-माल हो जाता है, वह इन गुणों को खूब भोगता भी है और लुटाता भी है...
प्रभू की यह दुकान का नाम है *सत्संग की दुकान*
सब गुणों के खजाने हमें ईश्वर से मिले हुए हैं, फिर कभी खाली हो भी जाए तो फिर सत्संग में आ कर बास्केट भर लेना...
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*प्रभू की इस दुकान से एक चीज भी ग्रहण कर सकुं ऐसी कृपा करना.*
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