*धर्मार्थ भोज और इच्छाशक्ति*

* तीन दोस्त भंडारे ( धर्मार्थ भोज ) में भोजन कर रहे थे...उनमें से*
* पहला बोला --- "काश...हम भी ऐसे भंडारा कर पाते!"*
*दूसरा बोला --- "हाँ...यार सैलरी तो आने से पहले ही जाने के रास्ते बना लेती है!"*
* तीसरा बोला ---"खर्चे...इतने सारे होते है तो कहाँ से करें भंडारा!"*
* उनके पास बैठे एक महात्मा भंडारे का आनंद ले रहे थे। और वो उन तीनों दोस्तों की बातें भी सुन रहे थे, महात्मा उन तीनों से बोले ---"बेटा भंडारा करने के लिए धन नहीं केवल अच्छे मन की जरूरत होती है!"*
* वह तीनों आश्चर्यचकित होकर महात्मा की ओर देखने लगे!.. महात्मा ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा --- बच्चों तुम..*
*रोज़ 5-10 ग्राम आटा लो और उसे चीटियों के स्थान पर खाने के लिए रख दो, देखना अनेकों चींटियां-मकौड़े उसे खुश होकर खाएँगे। बस हो गया भंडारा!*
*चावल-दाल के कुछ दाने लो, उसे अपनी छत पर बिखेर दो और एक कटोरे में पानी भर कर रख दो, चिड़िया-कबूतर आकर खाएंगे। बस हो गया भंडारा!*
*गाय और कुत्ते को रोज़ एक-एक रोटी खिलाओ, और घर के बाहर उनके पीने के लिये पानी भर कर रख दो। बस हो गया भंडारा!*
* ईश्वर ने सभी के लिए अन्न का प्रबंध किया है। ये जो तुम और मैं यहां बैठकर पूड़ी-सब्जी का आनंद ले रहे हैं ना, इस अन्न पर ईश्वर ने, हमारा नाम लिखा हुआ है!*
* बच्चों...तुम भी जीव-जन्तुओं के भोजन का प्रबन्ध करने के लिए जो भी व्यवस्था करोगे, वह भी उस ऊपरवाले की इच्छा से ही होगा, यही तो है भंडारा!*
* महात्मा बोले --- बच्चों जाने कौन कहाँ से आ रहा है और कौन कहाँ जा रहा है, किसी को भी पता नहीं होता और ना ही किसको कहाँ से क्या मिलेगा या नहीं मिलेगा यह पता होता, बस सब ईश्वर की माया है!*
* तीनों युवकों के चेहरे पर एक अच्छी सुकून देने वाली खुशी छा गई। उन्हें भंडारा खाने के साथ-साथ भंडारा करने का रास्ता भी मिल चुका था!*
* ईश्वर के बनाये प्रत्येक जीव-जंतु को भोजन देने के ईश्वरीय कार्य को जनकल्याण भाव से निस्वार्थ करने का संस्कार हमें बाल्यकाल से ही मिल जाता है। गर्व है हमें अपनी संस्कृति पर *
*इस संदेश का सार यही निकालना चाहिए कि हमें मानव जीवन कई योनियों से गुजरने के बाद उपलब्ध हुआ है । हम सभी को इतना तो सामर्थ्यवान बनाया है कि हम किसी भी जरूरतमंद की किसी भी रूप में मदद कर सकते हैं ।*
*तो तैयार रहें हर वक़्त*

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*ताला चाबी से भी खुलता है और हथौड़ा से भी। लेकिन चाबी से खुला ताला बार-बार काम आता है और हथौड़ा से खुला ताला केवल एक बार।* *संबन्धों के ताले को क्रोध के हथौड़े से नहीं बल्कि प्रेम की चाबी से खोलें।*

🏵️ रावण के पैर के नीचे का आध्यात्मिक रहस्य 🏵️👉रामायण देख रहे हमारे कई पाठकों के कई प्रश्नों में से एक अहम प्रश्न है कि रावण का जब सिंघासन दिखाया जाता गई,तो रावण के पैरों के पास कोई लेटा रहता है, जिस पर रावण पैर रखता है, वो कौन है ? और रावण के पैरों के नीचे क्यो रहता है ?तो आइए इस प्रश्न के उत्तर को शनि संहिता के अनुसार जानने का प्रयास करते हैं ।कथा के अनुसार लंका का राजारावण निःसंदेह एक महान योद्धा था। उसने अपने शासन में सातों द्वीपों को जीत लिया था। उसे ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था। उसने देवताओं को परास्त किया और नवग्रह उसके राजसभा की शोभा बढ़ाते थे। यहाँ तक कि वो शनि के सर पर अपना पैर रख कर बैठा करता था। यहाँ तक कि उसने भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। उसका वीर रूप ऐसा था कि उसके साथ अपने अंतिम युद्ध करते समय स्वयं श्रीराम ने कहा था कि आज रावण जिस रौद्ररूप में है कि उसे पराजित करना समस्त देवताओं के साथ स्वयं देवराज इंद्र के लिए भी संभव नहीं है। अपने अहंकार के मद में रावण ने शनि लोक पर चढ़़ाई कर दी और शनिदेव को महाकाल सहित बंदी बना लिया । उसने दोनों को अपने कारावास/पैरों में उलटा लटका कर बंदी बना लिया। वे दोनों अश्रु्धारा बहाते हुए अपने प्रभु शिव का स्मरण करने लगे तब भगवान शिव अपने भक्तों की करुण पुकार सुनकर प्रकट हुए और दोनों को आश्वस्त किया कि वे शीघ्र ही हनुमान के रुप में उनका उद्धार करने आएगें । इ्धर जब रावण का अत्याचार बढ़ने लगा तो भगवान विष्णु ने उसका संहार करने के लिए राम के रुप में और लक्ष्मी ने पृथ्वीपुत्री सीता के रुप में अवतार लिया । कालांतर में जब राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने हेतु वनवास लिया तो उनके साथ पृथ्वीपुत्री सीता व अनुज लक्ष्मण वन में रहने लगे।एक दिन रावण की बहन शूर्पनखा वहां आई और अपनी राक्षसी माया फैला कर राम- लक्ष्मण को यु़द्ध के लिए प्रेरित किया । यु़द्ध में रावण के खर, दुषण व त्रिशिरा जैसे शुरमा मारे गए। बदले की भावना से रावण ने सीता का छल से अपहरण कर लिया और लंका में अशोक वाटिका में छुपाकर रख दिया। उन्हीं दिनों राम- लक्ष्मण की भेंट रुद्रावतार हनुमान से हुई और फिर सीता की खोज शुरु हुई। हनुमान सीता की खोज के लिए समुद्र पार करके लंका में प्रवेश किया और अशोक वाटिका में छुपाकर रखी सीता को खोज निकाला । सीता से मिलने के बाद हनुमान ने अशोक वाटिका फल खाने लगे और विनाश मचा दिया । हनुमान को रोकने के लिए रावण ने अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा । लेकिन हनुमान ने अक्षय कुमार को मार डाला । अंत में मेघनाद ने हनुमान को ब्रह्रापाश में जकड़कर रावण के समक्ष उपसिथत कर दिया और रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी । हनुमान जी ने अपनी पूंछ से लंका का वि्ध्वंस कर दिया । लेकिन हनुमान जी ने देखा लंका जलने पर भी श्याम वर्ण नहीं हुई । तभी उनकी दॄष्टि रावण के कारावास/पैरों में उलटे लटके शनिदेव पर पड़ी । तब शनिदेव ने अपनी व्यथा हनुमान जी को सुनाई और रावण ने उनकी शक्ति को भी कीलित कर दिया है। हनुमान जी ने शनिदेव को मुक्त कर उनकी शक्ति का उत्कीलन कर दिया ।उलटि पलटि लंका सब जारि। फिर तो हनुमान जी के प्रताप व शनिदेव की दॄष्टि पड़ने पर लंका जल कर राख हो गई।इसके बाद राम- रावण यु़द्ध में रावण का अपने वंश सहित विनाश हो गया । बाद में हनुमान जी ने महाकाल और शनिदेवता को रावण के चंगुल से मुक्त करा दिया। हालांकि कुछ विद्वानों का मत है कि शनिदेव को संपूर्ण मुक्ति रावण की मृत्यु के बाद ही मिली थी ।तब शनिदेव हनुमान जी से बोले , “हे महावीर ! मैं आपका सदा ऋणी रहुंगा।” तब हनुमान जी ने शनिदेव दिव्य दॄष्टि प्रदान कर अपने रुद्र रुप के दर्शन कराये। उस समय शनिदेव ने हनुमान जी के चरण पकड़ लिए और प्रेम के अश्रु बहाने लगे। शनिदेव ने हनुमान जी से कहा कि प्रभु मैं आपके भक्तों को कभी भी पीडि़त नहीं करुंगा । जो मनुष्य इस कथा पढ़ेगा या श्रवण करेगा, मैं सदा उसकी रक्षा करुंगा।जय शनिदेव 🚩जय बजरंग बली 🚩जय श्रीराम 🚩प्रेम से बोलिये जय श्री राम

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