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जो मैं भावों को गीतों में कहने लगूँ मेरे भावों की माला तुम पिरोते हो हृदय में , मस्तिष्क में हर रंग में , सुगंध में सूर्योदय के स्वर्ण में ओर दिग दिगंत मेंहर स्वास के स्पन्दन में मेरी लेखनी के हर छन्द में वही आदि में वही अँत में लिख दूं तो लफ्ज़ तुम हो सोच लूं तो ख़याल तुम हो मांग लूं तो मन्नत तुम हो चाह लुं तो भक्ति तुम हो मेरे तो सब कुछ तुम ही हो *प्यारे* मुझे कुछ लिखने को कहते हो मेरे लेखन में तुम ही तो रहते हो *जो शब्दों को रागों में गूंथने लगूँतो तुम मेरे लेखन के सुर बनते हो * वर्ण वर्णों से जोडूँ जो एक कविता उस कविता के छंद तुम बनते हो * #जय श्री कृष्णा आप सभी को नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाएं
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