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Showing posts from February, 2022
खुश रहना बहुत कठिन तो नहींएक संत से एक युवक ने पूछा:-गुरुदेव, हमेशा खुश रहने का नुस्खा अगर हो तो दीजिए।संत बोले:- "बिल्कुल है, आज तुमको वह राज बताता हूँ।संत उस युवक को अपने साथ सैर को ले चले, अच्छी बातें करते रहे, युवक बड़ा आनंदित था। एक स्थान पर ठहर कर संत ने उस युवक को एक बड़ा पत्थर देकर कहा:- "इसे उठाए साथ चलो।पत्थर को उठाकर वह युवक संत के साथ-साथ चलने लगा। कुछ समय तक तो आराम से चला लेकिन थोड़ी देर में हाथ में दर्द होने लगा पर दर्द सहन करता चुपचाप चलता रहा। संत पहले की तरह मधुर उपदेश देते चल रहे थे पर युवक का धैर्य जवाब दे गया।उस युवक ने कहा:- गुरूजी आपके प्रवचन मुझे प्रिय नहीं लग रहे अब, मेरा हाथ दर्द से फटा जा रहा है।पत्थर रखने का संकेत मिला तो उस युवक ने पत्थर को फेंका और आनंद में भरकर गहरी साँसे लेने लगा।संत ने कहा:- "यही है खुश रहने का राज़, मेरे प्रवचन तुम्हें तभी आनंदित करते रहे जब तुम बोझ से मुक्त थे, परंतु पत्थर के बोझ ने उस आनंद को छीन लिया। जैसे पत्थर को ज़्यादा देर उठाये रखेंगे तो दर्द बढ़ता जायेगा उसी तरह हम दुखों या किसी की कही कड़वी बात के बोझ को जितनी देर तक उठाये रखेंगे उतना ही दुःख होगा।अगर खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं ।.
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एक दो बार समझाने से यदि कोई नही समझ रहा है तो सामने वाले को समझाना *छोड़ना पड़ता है* बच्चे बड़े होने पर वो ख़ुद के निर्णय लेने लगे तो उनके पीछे लगना, *छोड़ना पड़ता है* गिने चुने लोगों से अपने विचार मिलते हैं, यदि एक दो से नहीं जुड़ते तो उन्हें, *छोड़ना पड़ता है* एक उम्र के बाद कोई आपको न पूछे या कोई पीठ पीछे आपके बारे में गलत कह रहा है तो दिल पर लेना, *छोड़ना पड़ता है*अपने हाथ कुछ नहीं, ये अनुभव आने पर भविष्य की चिंता करना,एक दो बार समझाने से यदि कोई नही समझ रहा है तो सामने वाले को समझाना *छोड़ना पड़ता है* बच्चे बड़े होने पर वो ख़ुद के निर्णय लेने लगे तो उनके पीछे लगना, *छोड़ना पड़ता है* गिने चुने लोगों से अपने विचार मिलते हैं, यदि एक दो से नहीं जुड़ते तो उन्हें, *छोड़ना पड़ता है* अपने हाथ कुछ नहीं, ये अनुभव आने पर भविष्य की चिंता करना,यदि इच्छा और क्षमता में बहुत फर्क पड़ रहा है तो खुद से अपेक्षा करना, *छोड़ना पड़ता है*हर किसी का पद, कद, मद, सब अलग है इसलिए तुलना करना *छोड़ना पड़ता है*बढ़ती उम्र में जीवन का आनंद लीजिए, रोज जमा खर्च की चिंता करना, *छोड़ना पड़ता है*उम्मीदें होंगी तो सदमे भी बहुत होंगे, यदि सुकून से रहना है तो उम्मीदें करना, *छोड़ना पड़ता है*यदि इच्छा और क्षमता में बहुत फर्क पड़ रहा है तो खुद से अपेक्षा करना, *छोड़ना पड़ता है*हर किसी का पद, कद, मद, सब अलग है इसलिए तुलना करना *छोड़ना पड़ता है*बढ़ती उम्र में जीवन का आनंद लीजिए, रोज जमा खर्च की चिंता करना, *छोड़ना पड़ता है*उम्मीदें होंगी तो सदमे भी बहुत होंगे, यदि सुकून से रहना है तो उम्मीदें करना, *छोड़ना पड़ता है*
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आदमी के भीतर कोई ना कोई चिंतन और किसी ना किसी का संग चलता ही रहता है। यदि चिंतन और संग करना ही है तो क्यों ना श्रेष्ठ का किया जाए। दुनिया में ऐसे व्यक्ति बहुत हैं जो बिना प्रयोजन का चिंतन और संग करके अपना दिमाग और समय दोनों ख़राब करते रहते हैं। अच्छे चिंतन और संग से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। दुनिया ऐसे बहुत व्यक्तियों से भरी पड़ी है जिनका पूर्व जीवन दुष्प्रवृत्तियों से भरा रहा लेकिन कालांतर में सही संगति और सही वातावरण से ना केवल उन्होंने स्वयं का उद्धार किया अपितु लाखों लोगों के लिए वे प्रेरणास्रोत भी बने। सही मार्गदर्शन सही समय पर और सही व्यक्ति के द्वारा मिले तो परिणाम भी श्रेष्ठ निकलता है। सत्प्रवृत्तियाँ अच्छे माहौल में ही जन्म लेती हैं। यदि परिस्थितियाँ आप पर हावी हो रही हैं तो असहाय मत बनो। सद साहित्य को अपना साथी बनालो और अपने विचारों को दृढ़ संकल्प में बदल कर शून्य से शिखर तक पहुँच जाओ।
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एक थे गवारियां बाबा। वृन्दावन में ही रहते थे। बिहारी जी को अपना यार कहते थे। सिर्फ कहते नहीं, मानते भी थे। नियम था बिहारी जी को नित्य सायं शयन करवाने जाते थे। एक बार शयन आरती करवाने जा रहे थे। बिहारी जी की गली में बढ़िया मोदक बन रहें थे। अच्छी खुशबू आ रही थी। चार मोदक मांग लिए बिहारी जी के लिए ! वृन्दावन के लोग बिहारी जी के भक्तो का बड़ा आदर करते है। उन्होंने मना नहीं किया। एक डोने में बांध दियो साथ में। बाबा भीतर गए तो बिहारी जी के भोग के पट आ चुके थे। गवारिया बाबा जी ने वही बैठकर अपना कम्बल बिछाया और उस पर बैठकर अपने मन के भाव में खो गए। वहां बिहारी जी की आरती का समय हुआ तो श्री गौसाई जी बड़ा प्रयास कर रहे हैं लेकिन ठाकुर जी के मंदिर का पट नहीं खुल रहा। बड़े हैरान इधर उधर देख रहें। एक संत कोने में बैठे सब दृश्य आरंभ से देख रहें थे। पुजारी जी ने लाचारी से देखा तो संत बोले उधर गवारिया बाबा बैठे हैं उनसे पूछो वो बता देंगे। गौसाईं जी ने बाबा से कहा, रे बाबा तेरे यार तो दरवाजा ही न खोल रहियो ? बाबा हड़बड़ा कर उठे। रोम रोम पुलकित हो रहा था बाबा का। बाबा ने कहा जय जय ! अब जाओ ! और बाबा ने पुजारी से कहा अब खोलो। पुजारी जी ने तब खोला और दरवाजा खोलने का प्रयास किया। लेकिन हल्का सा छूते ही दरवाजा खुल गया। पुजारी जी ने आरती की और बिहारी जी को शयन करवा दिया। लेकिन आज पुजारी जी के मन में यह बात लगी है की आज मैं प्रयास करके हार गयो लेकिन दरवाजा नहीं खुला। लेकिन बाबा ने कहा और दरवाजा खुल गया। पुजारी जी गवारिया बाबा के पास गए और कहा , बाबा आज तुझे तेरे यार की सौगंध है। साँची साँची कह दें , आज तेरे यार ने क्या खेल खेलो। गवारिया बाबा हंस दिए। कहते जय जय ! जब आप भोग के लिए दरवाजा खोल रहे थे। तब बिहारी जी मेरे पास मोदक खा रहे थे। अभी मैंने उनका मुंह भी नहीं धुलाया था की आपने आवाज दे दी। उनका मुंह साफ कर देना। जाईये उनका मुख तो धुला दीजिये उनके मुख पर जूठन लगी है। गौसाईं जी ने स्नान किया मंदिर में गए तो देखा की ठाकुर जी के मुख पर तो लड्डू का जूठन लगी थी। सच में रहस्य रस है ठाकुर जी की सेवा में ! अधिकार रखिये श्री ठाकुर जी पर। सर्वस्व न्योशावर करके उनकी सेवा सुख मिलता है। अनहोनी होती है फिर सेवा की कृपा से। इसे सिर्फ श्री कृष्ण भक्त ही समझ सकते हैं। दुसरो को ऐसी बातें समझ नहीं आती। कृष्ण भक्त तो ठाकुर जी की हरेक कथा को अपने मन की आँखों से साक्षात् देख लेते है। उसी में आनंद लेते है। फिर दुनिया की भी परवाह नहीं करते। ठाकुर जी की तरफ जो सच्चे मन से बढ़ता है फिर ठाकुर जी भी उसके जीवन में ऐसा खेल खेलते है की जिसे वो अपना समझता है और ज़िंदगी भर अपना समझना चाहता है। जल्दी ही उसकी सारी पोल खोल देतें हैं। और सच में जो सच्चे मन से ठाकुर जी की शरण आ गयो उसे फिर संसार की चिंता नहीं रहती। उसकी चिंता फिर ठाकुर जी स्वयं करते है..!!
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*भगवान् की शरणागति के अलावा किसी अन्य मार्ग से माया को नहीं जीता जा सकता है। यह माया बड़ी प्रवल है और दूसरे हमारे साधन में निरंतरता नहीं है। लेकिन अगर गोविन्द की कृपा हो जाये तो काम-क्रोध और विषय- वासना से मुक्त हुआ जा सकता है।**तुम भले हो, बुरे हो, सज्जन हो, दुर्जन हो, पापी हो, पुण्यात्मा हो, कुछ मत सोचो। अपनी दुर्वलता का ज्यादा विचार करोगे तो आपके भीतर हीन भाव आ जायेगा। अपने सत्कर्मों और गुणों को ज्यादा सोचोगे तो अहम भाव आ जायेगा।**बस इतना सोचो कि प्रभुजी के चरण कैसे मिलें, शरण कैसे मिले, नाम जप कैसे बढे, संतों में प्रीति कैसे हो और कथा में अनुराग कैसे बढे ? यह सब हो गया तो प्रभु को आते देर ना लगेगी।**सनमुख होइ जीव मोहि जहॉ।**जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।*
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“एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों??
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*एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया- मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ..? इसका क्या कारण है ? राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये .. अचानक एक वृद्ध खड़े हुये बोले - महाराज आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है.. राजा ने घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार ( गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं.. राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं ,वे दे सकते हैं ।” राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा.. राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे.. राजा को महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास समय नहीं है... आगे आदिवासी गाँव में एक बा...