Posts

Showing posts from May, 2021

*भगवान का साथ*एक बुजुर्ग दरिया के किनारे पर जा रहे थे। एक जगह देखा कि दरिया की सतह से एक कछुआ निकला और पानी के किनारे पर आ गया। उसी किनारे से एक बड़े ही जहरीले बिच्छु ने दरिया के अन्दर छलांग लगाई और कछुए की पीठ पर सवार हो गया। कछुए ने तैरना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग बड़े हैरान हुए।उन्होंने उस कछुए का पीछा करने की ठान ली। इसलिए दरिया में तैर कर उस कछुए का पीछा किया। वह कछुआ दरिया के दूसरे किनारे पर जाकर रूक गया। और बिच्छू उसकी पीठ से छलांग लगाकर दूसरे किनारे पर चढ़ गया और आगे चलना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग भी उसके पीछे चलते रहे। आगे जाकर देखा कि जिस तरफ बिच्छू जा रहा था उसके रास्ते में एक भगवान् का भक्त ध्यान साधना में आँखे बन्द कर भगवान् की भक्ति कर रहा था।उस बुजुर्ग ने सोचा कि अगर यह बिच्छू उस भक्त को काटना चाहेगा तो मैं करीब पहुँचने से पहले ही उसे अपनी लाठी से मार डालूँगा। लेकिन वह कुछ कदम आगे बढे ही थे कि उन्होंने देखा दूसरी तरफ से एक काला जहरीला साँप तेजी से उस भक्त को डसने के लिए आगे बढ़ रहा था। इतने में बिच्छू भी वहाँ पहुँच गया।उस बिच्छू ने उसी समय सांप डंक के ऊपर डंक मार दिया, जिसकी वजह से बिच्छू का जहर सांप के जिस्म में दाखिल हो गया और वह सांप वहीं अचेत हो कर गिर पड़ा था। इसके बाद वह बिच्छू अपने रास्ते पर वापस चला गया।थोड़ी देर बाद जब वह भक्त उठा, तब उस बुजुर्ग ने उसे बताया कि भगवान् ने उसकी रक्षा के लिए कैसे उस कछुवे को दरिया के किनारे लाया, फिर कैसे उस बिच्छु को कछुए की पीठ पर बैठा कर साँप से तेरी रक्षा के लिए भेजा। वह भक्त उस अचेत पड़े सांप को देखकर हैरान रह गया। उसकी आँखों से आँसू निकल आए, और वह आँखें बन्द कर प्रभु को याद कर उनका धन्यवाद करने लगा, तभी ""प्रभु"" ने अपने उस भक्त से कहा, जब वो बुजुर्ग जो तुम्हे जानता तक नही, वो तुम्हारी जान बचाने के लिए लाठी उठा सकता है। और फिर तू तो मेरी भक्ति में लगा हुआ था तो फिर तुझे बचाने के लिये मेरी लाठी तो हमेशा से ही तैयार रहती है...! *जय श्री राधेकृष्णा*

Image

क्या भगवान मौजूद है ❓❓❓ये बिलकुल ऐसा ही है की एक गर्भ में बैठा हुआ छोटा बच्चा सवाल करे कि क्या माँ होती हैं अगर होती हैं तो अभी कहाँ हैं दिखती क्यों नहीं हैं !!एक मां के पेट में दो बच्चे थे। एक ने दुसरे से पूछा:"आप प्रसव के बाद जीवन में विश्वास करते हो?"दूसरे ने कहा, "क्यों, बिल्कुल। प्रसव के बाद कुछ जरुर होगा । शायद हम बाद में क्या होगा,इस के लिए खुद को तैयार करने के लिए यहां हैं। ""बकवास" पहले ने कहा। "प्रसव के बाद कोई जीवन नहीं है। यहाँ से बाहर किस तरह का जीवन हो सकता है? "दूसरा- मैं नहीं जानता, लेकिन यहाँ की तुलना में बाहर अधिक प्रकाश होगा! उस ने फिर कहा, "हो सकता है कि हम अपने पैरों के साथ चलेंगे और हमारे मुंह से खाना जाएगा। ये सब हो सकता है पर अभी हम नहीं समझ सकते कि अन्य इंद्रियों के साथ और क्या सब कर सकते हैं! "पहले ने फिर कहा "!..यह बेतुका है, "। चलना असंभव है। और हमारे मुंह से खाना जायेगा ये सिर्फ हास्यास्पद हैं ! गर्भनाल पोषण की और वह सब कुछ आपूर्ति करती है जिसकी हमें जरूरत है। लेकिन गर्भनाल इतना छोटा है की प्रसव के बाद जीवन को तार्किक रूप से असंभव समझा जाना चाहिए "दूसरे ने फिर जोर दिया की ""वैसे मेरे हिसाब से यहाँ से बाहर कुछ है और यह हो सकता है यहाँ की तुलना में अलग है,"' हो सकता है कि अब हमें इस गर्भनाल की जरूरत ही नहीं होगी। "पहले ने कहा, "बकवास। जीवन अगर इसके अलावा हैं कहीं तो , फिर क्यों कोई भी कभी भी वहाँ से वापस नहीं आया है? डिलिवरी जीवन का अंत है, और उसके बाद जीवन में सिर्फ अंधेरा सन्नाटा और गुमनामी हैं ""ठीक है, मैं नहीं जानता,", दूसरा बोला , "लेकिन निश्चित रूप से हम माँ से मिलेंगे और वह हमारा ध्यान रखेगी ""माँ "" आप वास्तव में माँ में विश्वास करते हैं? यह हास्यास्पद है। माँ अगर मौजूद है, तो वह अभी कहाँ हैं ? "पहले ने जोर देके कहा !!दूसरे ने कहाँ वह हमारे चारों तरफ है, " हम उससे घिरे हैं। हम उसके अन्दर ही रहते हैं उसके बिना इस दुनिया का अस्तित्व ही नहीं हो सकता हैं ।पहले ने कहा: "तार्किकता के हिसाब से चूँकि हम उसे देख नहीं सकते इसलिए वह मौजूद भी नहीं हैं "इस पर दूसरे बच्चे ने कहा कि आप जब मौन रहते हैं या जब आप ध्यान केंद्रित करते हैं तब आप उसकी उपस्थिति अनुभव कर सकते हैं, और दूर से आती उसकी आवाज़ भी सुन सकते हैं "।हरे कृष्ण

Image

सबको अपना आशीर्वाद देने में सक्षम रहो चाहे आप कितने ही तूफानों से गुज़र रहें हों। हो सकता है थोड़े दिन खराब जायें, उदासी रहे लेकिन दोबारा शून्य से शुरुआत करके सौ तक पहुंचने का हौंसला रखो। अपनी भाषा या सोच को ख़राब न करो। वक्त इम्तहान लेने आता है, लेकर चला जायेगा। सदैव सकारात्मक रहो। *राधे राधे*

Image

जय-जय श्री राधे !!~!! ❖परम पिता ❖परमेश्वर तुम हो❖ तुम संसार के पालक हो❖रचियता हो❖ तुम जग के❖तुम ही जग के संहारक हो❖तुम ही विष्णु❖ तुम ही शंकर❖तुम ब्रम्हा का रूप रचाते हो❖हे #कान्हा तुम ❖आदि पुरूष❖पुरूषोत्तम भी कहलाते हो कान्हा जी मैंने तेरी #लगन लगाई नाम तेरा जपते जपते थी मीरा हुई दीवानी बिन आंखों के सूर सुना गए सबको तेरी कहानी💕तेरी लगन लगा के नरसी ने भी सुध बिसराई कान्हा जी मैंने तेरी लगन लगाई जिसने तुम पर छोड़ दिया सब वो सुख ही पाता है उसके जीवन में कान्हा दुख दर्द कहाँ आता है अपने भक्तों की कान्हा तुमने बिगड़ी है बनाई कान्हा जी मैंने तेरी लगन लगाई~!! जय-जय श्री राधे !!~

Image

अर्जन और विसर्जन ये मनुष्य जीवन के दो अहम पहलू हैं। अगर जीवन को ठीक तरह से समझा जाये तो वो ये कि यहाँ अर्जन है तो विसर्जन भी है और विसर्जन है तो अर्जन भी अवश्यमेव है।वृक्ष कभी इस बात पर व्यथित नहीं होता है कि उसने कितने फूल अथवा कितने पत्ते खो दिये। वह सदैव नये फूल और पत्तों के सृजन में व्यस्त रहता है।नदियां भी कभी इस बात का शोक नहीं करती है कि प्रतिपल कितना कितना जल प्रवाहित हो गया। वो सदैव उसी वेग में लोक मंगल हेतु प्रवाहमान बनी रहती है। उन्हें भी पता होता है कि हम जितना देंगे , उतना ही हमें ईश्वर द्वारा और ज्यादा दे दिया जायेगा।जीवन में कितना कुछ खो गया, इस पीड़ा को भूलकर हम क्या नया कर सकते हैं इसी में जीवन की प्रगति और श्रेष्ठता है।जीवन में जब तक पुराना नहीं जाता है तब तक नयें आने की संभावनाएं भी नगण्य रहती हैं।अगर जीवन से कुछ जा रहा है तो चिंता मत करो अपितु ये भाव रखो कि वो ईश्वर जरूर हमें कुछ नया देने की, कुछ और बेहतर देने की तैयारी कर रहा है। हरे कृष्ण--------

Image

मधुवन वह स्थान है जहां श्री कृष्ण गौचारण के लिए जाते थे। तो आइये चलते हैं मधु वन। जय श्री कृष्णा। मधुवन - महोली मधुपुरी या मधुरा के पास का एक वन जिसका स्वामी मधु नाम का दैत्य था। मधु के पुत्र लवणासुर को शत्रुघ्न ने विजित किया था। ध्रुव जी मन्दिर, मधुवनमथुरा से लगभग साढ़े तीन मील दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित यह ग्राम वाल्मीकि रामायण में वर्णित मधुपुरी के स्थान पर बसा हुआ है। मधुपुरी को मधु नामक दैत्य ने बसाया था। उसके पुत्र लवणासुर को शत्रुघ्न ने युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया था और मधुपुरी के स्थान पर उन्होंने नई मथुरा या मथुरा नगरी बसाई थी। महोली ग्राम को आजकल मधुवन-महोली कहते हैं। महोली मधुपुरी का अपभ्रंश है। लगभग 100 वर्ष पूर्व इस ग्राम से गौतम बुद्ध की एक मूर्ति मिली थी। इस कलाकृति में भगवान को परम कृशावस्था में प्रदर्शित किया गया है। यह उनकी उस समय की अवस्था का अंकन है जब बोधिगया में 6 वर्षों तक कठोर तपस्या करने के उपरांत उनके शरीर का केवल शरपंजन मात्र ही अवशिष्ट रह गया था। इस वन का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार है- 'तमुवाच सहस्त्राक्षो लवणो नाम राक्षस: मधुपुत्रो मधुवने न तेऽज्ञां कुरुतेऽनघ'विष्णुपुराण में भी यमुना तटवर्ती इस वन का वर्णन है- 'मधुसंज्ञ महापुण्यं जगाम यमुनातटम्, पुनश्च मधुसंज्ञेन दैत्यानाधिष्ठितं यत:, ततो मधुवनं नाम्ना ख्यातमत्र महीतले' विष्णुपुराण से सूचित होता है कि शत्रुघ्न ने मधुवन के स्थान पर नई नगरी बसाई थी- 'हत्वा च लवणं रक्षो मधुपुत्रं महाबलम्, शत्रुघ्नो मधुरां नाम पुरींयत्र चकार वै'हरिवशंपुराण के अनुसार इस वन को शत्रुघ्न ने कटवा दिया था- 'छित्वा वनं तत् सौमित्रि.... पौराणिक कथा के अनुसार ध्रुव ने इसी वन में तपस्या की थी। प्राचीन संस्कृत साहित्य में मधुवन को श्रीकृष्ण की अनेक चंचल बाल-लीलाओं की क्रीड़ास्थली बताया गया है। यह गोकुल या वृन्दावन के निकट कोई वन था। आजकल मथुरा से साढ़े तीन मील दूर महोली मधुवन नामक एक ग्राम है। यह ब्रज के प्रसिद्ध बारह वनों में से एक है। मथुरा से लगभग साढ़े तीन मील दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित यह ग्राम वाल्मीकि रामायण में वर्णित मधुपुरी के स्थान पर बसा हुआ है। मधुपुरी को मधु नामक दैत्य ने बसाया था। उसके पुत्र लवणासुर को शत्रुघ्न ने युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया था और मधुपुरी के स्थान पर उन्होंने नई मथुरा या मथुरा नगरी बसाई थी। महोली ग्राम को आजकल मधुवन-महोली कहते है। महोली मधुपुरी का अपभ्रंश है। लगभग 100 वर्ष पूर्व इस ग्राम से गौतम बुद्ध की एक मूर्ति मिली थी। इस कलाकृति में भगवान को परम कृशावस्था में प्रदर्शित किया गया है। यह उनकी उस समय की अवस्था का अंकन है जब बोधि गया में 6 वर्षों तक कठोर तपस्या करने के उपरांत उनके शरीर का केवल शरपंजन मात्र ही अवशिष्ट रह गया था। पारंपरिक अनुश्रुति में मधु दैत्य की मथुरा और उसका मधुवन इसी स्थान पर थे। यहाँ लवणासुर की गुफ़ा नामक एक स्थान है जिसे मधु के पुत्र लवणासुर का निवासस्थान माना जाता है। मधुवन-कथासत्य युग में मधु नामक एक दैत्य का भगवान ने यहाँ वध किया था। इस कारण भगवान का नाम मधुसूदन हो गया। अत: भगवान श्री मधुसूदन के नाम पर इस वन का नाम मधुवन पड़ा है, क्योंकि यह मधुवन भगवान श्री मधुसूदन के समान ही प्रिय एवं मधुर है। मधुसूदन का ही दूसरा नाम माधव है, क्योंकि ये सर्व लक्ष्मीमयी राधिका के प्रियतम या वल्लभ हैं। ये श्री माधव ही वन के अधिष्ठात देवता हैं। वन भ्रमण के समय यहाँ स्नान एवं आचमन के समय 'ओं ह्रां ह्रीं मधुवनाधिपतये माधवाय नम: स्वाहा' मन्त्र का जप करना चाहिए। इस मन्त्र के जप से यहाँ परिक्रमा सफल होती है। मधुवन का वर्तमान नाम महोली ग्राम है। ग्राम के पूर्व में ध्रुव टीला है। जिस पर बालक ध्रुव एवं उनके आराध्य चतुर्भुज नारायण का श्रीविग्रह विराजमान है। यही ध्रुव की तपस्यास्थली है। यहीं पर बालक ध्रुव ने देवर्षि नारद के दिये हुए मन्त्र के द्वारा भगवान की कठोर आराधना की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उनको दर्शन दिया और छत्तीस हज़ार वर्ष का एकछत्र भूमण्डल का राज्य एवं तत्पश्चात अक्षय ध्रुवलोक प्रदान किया। ध्रुवलोक ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत ही श्रीहरि का एक अक्षयधाम है। त्रेता युग में मधुदैत्य के अत्याचार से ऋषि–मुनि और यहाँ के निवासी बहुत भयभीत थे। उस दैत्य ने शंकर जी की कठोर आराधना कर उनसे एक शूल प्राप्त किया था। वह शूल उसके हाथों में रहने पर उसे देवता, दानव अथवा मनुष्य कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। वह सूर्यवंश का एक राजकुमार था। किन्तु कुसंगति में पड़कर बड़ा ही क्रूर और सदाचार विहीन हो गया। इसीलिए उसके पिता ने उसे त्यज्य पुत्र के रूप में अपने राज्य से निकाल दिया था। वह मधुवन में रहता था। मधुवन में एक नये राज्य की स्थापना कर वह सभी को उत्पीड़ित करने लगा। सूर्यवंश के महाप्रतापी राजा मांधाता ने उसे दण्ड देने के लिए उस पर आक्रमण किया, किन्तु मधु दैत्य के शंकर प्रदत्त शूल के द्वारा वे भी मारे गये। अपनी मृत्यु से पूर्व दैत्य ने उस शूल को अपने पुत्र लवणासुर को दिया और उससे कहा कि जब तक तेरे हाथों में यह शूल रहेगा, तुम्हें कोई नहीं मार सकता। शत्रु तुम्हारे इस अमोघ त्रिशूल के द्वारा मारा जायेगा। उस शूल को पाकर लवणासुर और भी भयंकर अत्याचारी हो गया। उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर मधुवन के आस पास के ऋषि महर्षि अयोध्या में श्री राम के समीप पहुँचे और दीन हीन होकर लवणासुर से अपनी रक्षा की प्रर्थना की। उन्होंने लवणासुर के पराक्रम एवं अमोद्य शूल के सम्बन्ध में भी सूचना दी। उन्होंने कहा कि वह उक्त शूलरहित अवस्था में ही मारा जा सकता है, अन्यथा वह अजेय है। भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने अपने छोटे भैया शत्रुघ्न जी को अयोध्या में ही मधुवन के राज्य का राजतिलक किया। शत्रुघ्न जी ने लंका से लाये हुये प्रभावशाली श्री वराह मूर्ति को पूजा के लिए माँगा। श्रीरामचन्द्र जी ने सहर्ष वह वराहमूर्ति शत्रुघ्नजी को प्रदान की। शत्रुघ्न जी ऋषि-महर्षियों के साथ वाल्मीकि ऋषि के आश्रम से होते हुए उनका आशीर्वाद लेकर मधुवन पहुँचे और धनुष–बाण के साथ लवणासुर की गुफ़ा के द्वार पर उस समय पहुँचे, जिस समय वह अपने शूल को गुफ़ा में रखकर शिकार के लिए जंगल में गया हुआ था। जब वह हाथी और बहुत से मृग आदि जानवरों का बध कर उन्हें लेकर अपने वासस्थान में लौट रहा था, उसी समय शत्रुघ्न जी ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। वह किसी प्रकार से अपना शूल लाने की चेष्टा कर रहा था। किन्तु, महापराक्रमी शत्रुघ्नजी ने उसे शूल ग्रहण करने का समय नहीं दिया और अपने पैने बाणों से उसका सिर काट दिया। फिर उन्होंने उजड़ी हुई मधुपुरी को पुन: बसाया और वहाँ भगवान वराहदेव की स्थापना की। ये आदिवराहदेव मथुरा में उसी स्थान पर विराजमान हैं। मधुवन में भगवान माधव का प्रिय मधुकुण्ड भी है, अब इसे कृष्णकुण्ड भी कहते हैं पास ही में लवणासुर की गुफ़ा है। यहीं कृष्णकुण्ड के तट पर भगवान शत्रुघ्नजी का दर्शनीय श्रीविग्रह है। ध्रुव कुण्ड, मधुवनद्वापर युग के अन्त में श्री कृष्ण लाखों गऊओं के पीछे उनका नाम धौली, धूमरी, कालिन्दी आदि पुकारते हुए हियो–हियो, धीरी–धीरी, तीरी–तीरी ध्वनि करते हुए दाऊ भैया के साथ मधुर बांसुरी बजाते सखाओं के कन्धे पर हाथ रखे हँसते–हँसाते हुए कभी कुञ्जों की ओर से ब्रजमणियों की ओर सतृष्ण नेत्रों से कटाक्षपात करते हुए गोचारण के लिए जाते। गोचारण में ग्वाल मण्डली में रसीली धूम मच जाती। इस प्रकार मधुवन में जहाँ तहाँ सर्वत्र ही प्रेम का मधु बरसता था। गोचारण करते हुए श्रीकृष्ण श्रीबलराम जी के साथ उस प्रेम मधु को पानकर निहाल हो उठते। ब्रज रमणियाँ गोष्ठ से निकलते एवं लौटते समय कुञ्जों की आड़ से, महलों की अटारियों और झरोखों से अपनी प्रेमभरी तिरछी चितवनों से कृष्ण की आरती उतारती थीं। कृष्ण उसे नेत्रभंगी से स्वीकार करते। कृष्ण के विरह में ये ब्रजवधुएँ एक पल का समय भी करोड़ों युगों के समान और मिलन में एक युग का समय भी निमेष के समान अनुभव करती थीं। मधुवन में गोचारण की लीला भी मधु के समान मधुर और वर्णनातीत है। कलियुग में अभी पाँच सौ पच्चीस वर्ष पूर्व श्रीचैतन्य महाप्रभु जी वन भ्रमण के समय मधुवन में पधारे थे। यहाँ श्रीकृष्ण लीलाओं की स्फूर्ति से वे विहृल हो उठे। यहाँ पर प्रतिवर्ष बहुत सी यात्राएँ विश्राम करती हैं। ऐसी किंवदन्ती है कि दाऊजी यहाँ मधुपानकर सखाओं के साथ नृत्य करते थे। आज भी यहाँ काले दाऊजी का विग्रह दर्शनीय है। इसका गूढ़ रहस्य यह है कि श्रीकृष्ण बलदेव वृन्दावन और मथुरा को छोड़कर द्वारका में परिजनों के साथ वास करने लगे। उस समय ब्रज एवं ब्रजवासियों का श्रीकृष्ण विरह से व्याकुलता की बात सुनकर बलदेव जी ने कृष्ण को साथ लेकर ब्रज में जाने की इच्छा व्यक्त की। किन्तु किसी कारण से श्री कृष्ण के जाने में विलम्ब देखकर वे अकेले ही ब्रज में पधारे और सबको यथा साध्य सांत्वना देने की चेष्टा की किन्तु ब्रजवासियों की विरह दशा देखकर स्वयं भी कृष्ण विरह में कातर हो गये। कृष्ण की ब्रजलीलाओं का चिन्तन करते हुए श्यामरस पान करते हुए एवं श्याम की चिन्ता करते हुए, स्वयं श्याम अंगकान्ति वाले हो गये। यह श्यामरस ही मधु है, जिसे बलदेव सतत पानकर कृष्ण प्रेम में विभोर रहते हैं। बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।

Image

याद करने का मन नही है क्या श्री राधे

Image

*कर्म का फ़ल**व्यक्ति को उसी तरह ढूँढ लेता है**जैसे एक बछड़ा खो जाने पर**सैंकड़ों गायों में अपनी माँ को ढूँढ लेता है..

Image

धर्म जानना अच्छा, उसे श्रेष्ठ तरीक़े से बताने वाला उससे भी अच्छा ,श्रद्धा से सुनने वाला उससे भी अच्छा,धर्म का आचरण करना सबसे अच्छा,,खुश रहना अच्छी बात ,दूसरों की खुशी में खुश रहना बड़ी बात ,बड़ा आदमी बनना अच्छी बात पर अच्छा आदमी बनना बड़ी बात मानव जन्म अच्छी बात मानवता का जीवित रहना बड़ी बात

Image

“प्रपत्ति-बोधिनी”कभी-कभी जिस समय हमें विश्वास की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है, उसी समय हम अविश्वासी हो जाते हैं। विपत्ति को आते देखकर ही हम अपना विश्वास उतार फेंकते हैं। यह सबसे बड़ी मूर्खता है। विपत्ति से निपटने में विश्वास ही तो सहायक है। उसे पकड़े रहें। विपत्ति में विश्वास को और अधिक कसकर पकड़ लें।

Image

जीवन तब जटिल बन जाता है जब हम सीखना बंद कर देते हैं। यह संपूर्ण प्रकृति एक सीख और सिखावन से प्रदान करती है ताकि हम उससे कुछ सीख कर अपने जीवन को और सरल, खुशहाल व आनंदमय बना सकें।चींटी से मेहनत बगुले से तरकीब और मकड़ी से कारीगरी ये हमें अपने जीवन में सीखनी चाहिए।नन्हीं सी चींटी महीने भर मेहनत करती है और और साल भर आराम और निश्चिंतता से अपना जीवन जीती है। बिना मेहनत के जीवन खुशहाल और निश्चिंत नहीं बन सकता ये उस नन्हीं सी चींटी के जीवन की सीख है।वैसे तो बगुले को उसके ढोंग के लिए ही जाना जाता है मगर बगुले का वह ढोंग भी मनुष्य को एक बहुत बड़ी सीख दे जाता है। रास्ते बदलो पर लक्ष्य नहीं बदलो। कभी-कभी बहुत मेहनत के बाद भी कार्य सिद्ध नहीं हो पाता मगर वही कार्य कम मेहनत में भी सिद्ध हो सकता है, बस आपके पास उसकी तरकीब अथवा तरीका होना चाहिए।मकड़ी हमें रचनात्मकता की सीख देती है। अगर हम सदैव कुछ रचनात्मक करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं तो एक दिन हम पायेंगे कि हमारी रचनात्मकता सृजन का रूप ले चुकी होती है और एक नया अविष्कार हमारे द्वारा संपन्न चुका होता है। कारीगरी मानव जीवन का अहम पहलू है। मकड़ी की तरह अपने कार्य में निष्ठापूर्वक व्यस्त रहो और मस्त रहो मगर केवल जीवन की उलझनों में कभी भी अस्त-व्यस्त मत रहो।

Image

*अपने जीवन की तुलना किसी के* *साथ नहीं करनी चाहिए...!**"सूर्य" और "चंद्रमा" के बीच कोई* *तुलना नही**जब जिसका वक़्त आता है* *वो चमकता है...!!*🌹🙏🏻

Image

"कृष्ण" का नाम "सुखदाई" होता हैहर दुख की "दवाई" होता है,,"सुमिरन" करो और "ध्यान" धरोयही अंत समय "सहाई" होता है !!🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏

Image

*संसार में प्रत्येक व्यक्ति ज्ञानी है, प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान चाहता है, प्रत्येक व्यक्ति अपने को ज्ञानी समझता है, इसीलिये ज्ञान को नहीं प्राप्त कर पाता है। क्योंकि ज्ञानी को ज्ञान की क्या आवश्यकता है, ज्ञान की आवश्यकता तो अज्ञानी को होती है, जो व्यक्ति अपने को अज्ञानी समझता है उसे ही ज्ञान की प्राप्ति हो पाती है।**संसार में प्रत्येक व्यक्ति भक्त है, प्रत्येक व्यक्ति भक्ति चाहता है, प्रत्येक व्यक्ति अपने को भक्त समझता है, इसीलिये भक्ति को प्राप्त नहीं कर पाता है। क्योंकि भक्त को भक्ति की क्या आवश्यकता है, भक्ति की आवश्यकता तो अभक्त को होती है, जो व्यक्ति अपने को अभक्त समझता है उसे ही भक्ति प्राप्त हो पाती है।*

Image

एक सच्चा मित्र हज़ारों रिश्तेदारों से अच्छा है....यदि आपके सौ मित्र भी हैं तो भी कम हैं उन्हें निरंतर और बढ़ाओ यदि आपका एक शत्रु है, तो बहुत ज्यादा है उसे और घटाओ....कुशलतापूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है क्योकिअभिमान की ताकत फरिश्तो को भी शैतान बना देती है,औरनम्रता साधारण व्यक्ति को भी फ़रिश्ता बना देती है....शब्द उलझा सकते है पर मुस्कुराहट हमेशा काम कर जाती है क्योंकि कर्ण ने महाभारत में कहा था कि दोस्त दुर्योद्धन मुझे मृत्यु से डर नहीं लगता परभगवान श्रीकृष्ण की निश्चल मुस्कान मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को अंदर से हिला देती हैं।मुस्कुराते रहिये...

Image

आँसू....परमात्मा के लिए आपकी सहज और निर्मल प्रार्थना हैं। अगर आप खुलकर हृदय से परमात्मा के लिए रो लेते हैं तो समझिये इससे आगे और कुछ नहीं चाहिये उसको रिझाने के लिए । परमात्मा भाव देखता है शब्द नहीं।फिर एक दिन रोते-रोते हँसना आ जाता है । आँसुओं से बड़ी और कोई प्रार्थना नहीं है । इसलिए हृदय पूर्वक रोइये। आँसु निखारेंगे आपको, बुहारेंगे आपको जो व्यर्थ है वह बाहर निकल जाएगा । जो सार्थक है, निर्मल है, वह स्फटिक मणि की भांति स्वच्छ होकर भीतर जगमगाने लगेगा...।

Image

सुकून तलाशते है कभी जिंदगी में कभी संसार मेंकभी तुम्हारी प्रार्थना में कभी तुम्हारे प्यार में खैर,,,तेरी बनाई तकदीरें हैं *प्यारे* सांसों भरी ये तस्वीरें हैं *प्यारे* एक पंछी सा मैं और मेरा मन हैभटक कर पास तेरे चले आतें है

Image

सूरज के बिना सुबह नही होतीं चन्दा के बिना रात नही होतीबादल के बिना बरसात नही होतीं गोपाल तुम बिन नैय्या भव से पार नही होतीं .....❣🍃🙏🙏राधे राधे बोलना पड़ेगा

Image

*सफर भी हसीन हो जाए अगर तु मेरे संग संग हो जाए* *लफ्ज इस कदर हो जाए ज़ब भी खुले तेरा नाम निकल जाए**पहचान बस ऐसी हो जाए जो भी मिले वो ही जय श्री कृष्णा कह जाए* 🦚💓🌹

Image

एक बार एक पक्षी समुंदर में से चोंच से पानी बाहर निकाल रहा था। दूसरे ने पूछा - भाई ये क्या कर रहा है?पहला बोला - 😓 *समुंदर ने मेरे बच्चे डूबा दिए है अब तो इसे सूखा कर ही रहूँगा।* 😡 यह सुन दूसरा बोला भाई तेरे से क्या समुंदर सूखेगा !😔*तू छोटा सा और समुंदर इतना विशाल।**तेरा पूरा जीवन लग जायेगा फिर भी समुंदर को फर्क नही पड़ेगा !*पहला पक्षी बोला -*देना है तो साथ दे* !सिर्फ़ *सलाह नहीं चाहिए*।यह सुन दूसरा पक्षी भी साथ लग लिया।ऐसे हज़ारों पक्षी आते गए और दूसरे को कहते गए *सलाह नहीं साथ चाहिए*। यह देख भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ जी भी इस काम के लिए जाने लगे।भगवान बोले तू कहा जा रहा है ?तू गया तो मेरा काम रुक जाएगा !तुम पक्षियों से समुंदर सूखना भी नहीं है। गरुड़ जी ने बोला *भगवन सलाह नहीं साथ चाहिए*।फिर क्या ऐसा सुन भगवान विष्णु जी भी समुंदर सुखाने आ गये।*भगवन के आते ही समुंदर डर गया और उस पक्षी के बच्चे लौटा दिए ।*आज इस संकट के समय में भी देश को हमारी सलाह नहीं साथ चाहिए। आज सरकार को कोसने वाले नहीं समाज के साथ खड़े हो कर सेवा करने वाले लोगों की आवश्यकता है। *इसलिए सलाह नहीं साथ दें।**जो साथ दे दे सारा भारत, तो फिर से मुस्कुरायेगा भारत*।

Image

सूर्योदय के लिए सूर्य को अंधेरे से, हरियाली के लिए बसंत को पतझड़ से और गंगा स्वरूप होने के लिए एक नाले को कंकर - पत्थरों से टकराना अथवा लड़ना ही होता है। ठीक इसी प्रकार बेहतरीन व अच्छे दिनों के लिए मनुष्य को बुरे दिनों से अवश्य लड़ना पड़ता है अथवा तो बुरे दिनों का सामना करना ही पड़ता है।प्रभु श्री राम ने लंका को जीता मगर जीतने से पहले कितनी - कितनी विषमताओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।पाण्डवों ने महाभारत युद्ध जीता अवश्य मगर उसके मूल में भी अनगिन कठिनाइयां और विपत्तियां ही छुपी हुई हैं।निसंदेह ये जीवन यात्रा ऐसी ही है। यहाँ किसी बीज को वृक्ष बनने के लिए एक लंबी अवधि तक सर्व प्रथम जमीन में मिट्टी के नीचे दबना होता है। समय आने पर वो बीज अंकुरित तो हो जाता है मगर उसके बाद भी कभी तीखी धूप तो कभी कड़ाके की सर्दी का सामना करते हुए न जाने क्या - क्या विषमताएं अपने ऊपर झेलनी पड़ती हैं।धीरे-धीरे वो बढ़ने जरुर लगता है मगर यहां भी पग पग पर उसकी डगर आसान नहीं होती है। कभी आंधी, कभी तूफान, कभी ओलावृष्टि तो कभी अतिवृष्टि का सामना करते हुए वही बीज एक दिन विशाल वृक्ष का रूप ले चुका होता है। अब कभी अपने पत्तों द्वारा, कभी अपनी टहनियों द्वारा,कभी अपनी लकड़ियों द्वारा, कभी अपनी शीतल छाँव द्वारा तो कभी अपने मधुर फलों द्वारा परोपकार और परमार्थ करके एक वंदनीय और सम्माननीय जीवन जी पाता है।याद रखना दिन बुरे हो सकते हैं मगर जीवन नहीं। धैर्य, साहस, सावधानी और प्रसन्नता का कवच परिस्थितियों को भी आपका दास बना सकता है।जो डटेगा, वही टिकेगा और वही बढ़ेगा! हरे कृष्ण---------हरिबोल

Image

ना ही मेरा मुस्कुराने को दिल ❤करता है ना ही मेरा रोने को दिल करता है जब भी मिलता है थोड़ा गम या थोड़ी खुशी मेरा मथुरा जाने को दिल करता है🙏🏻

Image