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Showing posts from April, 2020
*एक बार भगवान राम और लक्ष्मण एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। उतरते समय उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ था! उन्होंने भगवान राम से कहा -" भ्राता ! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई ।" दोनों ने मिट्टी हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा है भगवान राम ने करुणावश मेंढक से कहा- "तुमने आवाज क्यों नहीं दी ? कुछ हलचल, छटपटाहट तो करनी थी। हम लोग तुम्हें बचा लेते जब सांप पकड़ता है तब तुम खूब आवाज लगाते हो। धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ?मेंढक बोला - प्रभु! जब सांप पकड़ता है तब मैं 'राम- राम' चिल्लाता हूं एक आशा और विश्वास रहता है, प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे। पर आज देखा कि साक्षात भगवान श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे है तो किसे पुकारता? आपके सिवा किसी का नाम याद नहीं आया बस इसे अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा।"कहानी का सार- *सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीकार करते हैं सुख और दुःख प्रभु की ही कृपा और कोप का परिणाम ही तो हैं।* 🙏*जय श्री राम*🙏
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*मैं रास्ते से गुज़र रहा था कि, सामने से एक परिचित मिल गए., उन्होंने मुझसे कहा “मज़े” में हो, मैंने जवाब दिया “आनंद” में हूँ..,* *तो उन्होंने कहा मज़े और आनंद में क्या फ़र्क़ है..? मुझे परिचित को बताना पड़ा कि, ”मज़े” के लिए पैसा चाहिए, और”आनंद” के लिए परिवार और मित्र चाहिए..!!*
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*हरे कृष्णा*।। *जीवन का हर फैसला भगवान पर छोड़ दो। वह आपकी हर समय रक्षा करेगा। ईश्वर के सामने अपनी इच्छाएं रखो, इन इच्छाओं के लिए समय तय मत करो। जो जीवन में घटेगा उस पर प्रश्न मत खड़े करो, बल्कि प्रभु पर अटूट विश्वास रखो, फिर देखना प्रभु आपको गोद से नहीं उतारेंगे*।*भक्ति में हमारा विश्वास कमजोर नहीं होना चाहिए। सुख-दुख*, *संकट में हमेशा प्रभु को याद करों। बाकी सब प्रभुजी ठीक करेंगें* ।*जय श्री राधे राधे*
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जिनके अनन्त रूप हैं जिनका कभी क्षय नहीं होता, कभी अधोगति नहीं होती कृष्णः 'कृष्' सत्तावाचक है | 'ण' आनन्दवाचक है | इन दोनों के एकत्व का सूचक परब्रह्म कृष्ण कहलाता है |केशवः क माने ब्रह्म को और ईश – शिव को वश में रखने वाले |केशिनिषूदनः घोड़े का आकार वाले केशि नामक दैत्य का नाश करने वाले |,कमल के पत्ते जैसी सुन्दर विशाल आँखों वाले |जगत्पतिः जगत के पति |जगन्निवासः जिनमें जगत का निवास मम् ह्दय के पास
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*एक नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा एक चूहा कछुवे से कहता है,मित्र..* " *क्या तुम मुझे नदी पार करा सकते हो मेरे बिल में पानी भर गया है..?**कछुवा राजी हो जाता है तथा चूहे को अपनी पीठ पर बैठा लेता है।**तभी एक बिच्छु भी बिल से बाहर आता है।**कहता है मुझे भी पार जाना है मुझे भी ले चलो।**चूहा बोला मत बिठाओ ये जहरीला है ये मुझे काट लेगा।**तभी समय की नजाकत को भांपकर बिच्छू बड़ी विनम्रता से कसम खाकर प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहता है...* *भाई कसम से नही काटूंगा बस मुझे भी ले चलो।"**कछुआ चूहे और बिच्छू को ले तैरने लगता है।**तभी बीच रास्ते मे बिच्छु चूहे को काट लेता है।* *चूहा चिल्लाकर कछुए से बोलता है "मित्र इसने मुझे काट लिया अब मैं नही बचूंगा।"**थोड़ी देर बाद उस बिच्छू ने कछुवे को भी डंक मार दिया। कछुवा मजबूर था जब तक किनारे पहुंचा चूहा मर चुका था।**कछुआ बोला* *मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया।**मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया..?* *बिच्छु उसकी पीठ से उतरकर जाते जाते बोला "मूर्ख तुम जानते नही मेरी तो धर्म ही है डंक मारना चाहे कोई भी हो।**गलती तुम्हारी है जो तुमने मुझ पर विश्वास किया*।
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गिलहरी का अनीति से युद्ध...राम रावण युद्ध की तैयारी का सारा दृश्य एक पेड़ पर बैठी हुई गिलहरी देख रही थी। रावण की अनीति और सीता हरण की गाथा भी उसने सुन रखी थी। इस धर्मयुद्ध में वह राम की विजय के लिये भगवान से प्रार्थना कर रही थी।सद्भाव और प्रार्थना ही तो सब कुछ नहीं है। पुरुषार्थ भी तो सत्प्रयोजन में करना चाहिए। रीछ, वानर तक जब अपनी जान की बाजी लगा रहे थे तो गिलहरी ने सोचा उसे भी तो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप कुछ करना चाहिए। यही चिंतन उसके मन में चल रहा था। सीता को रावण के हाथ से छुड़ाने के लिए गिद्ध जटायु अपने प्राण दे चुका था। अनीति करने वाले दानव से लड़ना अपनी जान को जोखिम में डालना है ! जटायु अपनी और रावण की शक्ति के अन्तर को जानता था तो भी वह लड़ा, उसने कायरता नहीं दिखाई। अन्याय देखते रहने की अपेक्षा अनीति से जूझने में उसने आदर्श का परिपालन समझा और रावण से लड़ते हुए ही अन्ततः जटायु ने अपने प्राण दिये।गिलहरी को यह आदर्श मन को अच्छा लगा । सोचने लगी, वह भी इस धर्म युद्ध में सहयोग देने के लिए पीछे न रहेगी, भले ही वह योगदान स्वल्प ही क्यों न हो?गिलहरी को एक सूझ सूझी। वह लंका पहुँचने तक का रास्ता बनाने के लिए समुद्र को उथला बनाने की बात सोचने लगी। बालों में बालू भरती और उसे समुद्र में झाड़ देती। लगातार वह इसी काम में लगी रहती। शरीर छोटा था। साधन स्वल्प थे। पर उसकी हिम्मत अटूट थी, जो बन पड़े सो नीति के समर्थन में करना ही चाहिए। यह लगन उसे पूरी तरह लगी हुई थी।गिलहरी का पुरुषार्थ आश्चर्यजनक था। राम की दृष्टि उस पर पड़ी। साधन स्वल्प, पर पुरुषार्थ महान। यह दृश्य देखकर राम पुलकित हो उठे।उन्होंने गिलहरी के समीप जाकर उसके साहस को देखा और भावपूर्वक उसे हाथ में उठा लिया। हथेली पर बिठाया और दूसरे हाथ की उंगलियाँ अत्यन्त स्नेहपूर्वक उसकी पीठ पर सहलाने लगे। गिलहरी ने भी अपने को धन्य माना। वह छोटी है तो क्या पर उसकी हिम्मत और भावना तो ऊंची मानी गई। सराही गई।राम सांवले थे, उनकी उंगलियाँ भी वैसी ही थी। पीठ पर हाथ फेरते रहने से गिलहरी की पीठ पर काली धारियाँ बन गई। कालांतर में उसके वंशजों की पीठ पर वह काली धारियाँ बनती चली आई। राम (धर्म ) के प्रति कृतज्ञता का चिन्ह उस वर्ग के प्राणियों की पीठ पर अभी भी अंकित पाया जाता है।माना जाता है कि यह तीन रेखाएं रामजी, लक्षमण जी और सीता जीकी प्रतीक है।🙏🏻
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🏵️ रावण के पैर के नीचे का आध्यात्मिक रहस्य 🏵️👉रामायण देख रहे हमारे कई पाठकों के कई प्रश्नों में से एक अहम प्रश्न है कि रावण का जब सिंघासन दिखाया जाता गई,तो रावण के पैरों के पास कोई लेटा रहता है, जिस पर रावण पैर रखता है, वो कौन है ? और रावण के पैरों के नीचे क्यो रहता है ?तो आइए इस प्रश्न के उत्तर को शनि संहिता के अनुसार जानने का प्रयास करते हैं ।कथा के अनुसार लंका का राजारावण निःसंदेह एक महान योद्धा था। उसने अपने शासन में सातों द्वीपों को जीत लिया था। उसे ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था। उसने देवताओं को परास्त किया और नवग्रह उसके राजसभा की शोभा बढ़ाते थे। यहाँ तक कि वो शनि के सर पर अपना पैर रख कर बैठा करता था। यहाँ तक कि उसने भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। उसका वीर रूप ऐसा था कि उसके साथ अपने अंतिम युद्ध करते समय स्वयं श्रीराम ने कहा था कि आज रावण जिस रौद्ररूप में है कि उसे पराजित करना समस्त देवताओं के साथ स्वयं देवराज इंद्र के लिए भी संभव नहीं है। अपने अहंकार के मद में रावण ने शनि लोक पर चढ़़ाई कर दी और शनिदेव को महाकाल सहित बंदी बना लिया । उसने दोनों को अपने कारावास/पैरों में उलटा लटका कर बंदी बना लिया। वे दोनों अश्रु्धारा बहाते हुए अपने प्रभु शिव का स्मरण करने लगे तब भगवान शिव अपने भक्तों की करुण पुकार सुनकर प्रकट हुए और दोनों को आश्वस्त किया कि वे शीघ्र ही हनुमान के रुप में उनका उद्धार करने आएगें । इ्धर जब रावण का अत्याचार बढ़ने लगा तो भगवान विष्णु ने उसका संहार करने के लिए राम के रुप में और लक्ष्मी ने पृथ्वीपुत्री सीता के रुप में अवतार लिया । कालांतर में जब राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने हेतु वनवास लिया तो उनके साथ पृथ्वीपुत्री सीता व अनुज लक्ष्मण वन में रहने लगे।एक दिन रावण की बहन शूर्पनखा वहां आई और अपनी राक्षसी माया फैला कर राम- लक्ष्मण को यु़द्ध के लिए प्रेरित किया । यु़द्ध में रावण के खर, दुषण व त्रिशिरा जैसे शुरमा मारे गए। बदले की भावना से रावण ने सीता का छल से अपहरण कर लिया और लंका में अशोक वाटिका में छुपाकर रख दिया। उन्हीं दिनों राम- लक्ष्मण की भेंट रुद्रावतार हनुमान से हुई और फिर सीता की खोज शुरु हुई। हनुमान सीता की खोज के लिए समुद्र पार करके लंका में प्रवेश किया और अशोक वाटिका में छुपाकर रखी सीता को खोज निकाला । सीता से मिलने के बाद हनुमान ने अशोक वाटिका फल खाने लगे और विनाश मचा दिया । हनुमान को रोकने के लिए रावण ने अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा । लेकिन हनुमान ने अक्षय कुमार को मार डाला । अंत में मेघनाद ने हनुमान को ब्रह्रापाश में जकड़कर रावण के समक्ष उपसिथत कर दिया और रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी । हनुमान जी ने अपनी पूंछ से लंका का वि्ध्वंस कर दिया । लेकिन हनुमान जी ने देखा लंका जलने पर भी श्याम वर्ण नहीं हुई । तभी उनकी दॄष्टि रावण के कारावास/पैरों में उलटे लटके शनिदेव पर पड़ी । तब शनिदेव ने अपनी व्यथा हनुमान जी को सुनाई और रावण ने उनकी शक्ति को भी कीलित कर दिया है। हनुमान जी ने शनिदेव को मुक्त कर उनकी शक्ति का उत्कीलन कर दिया ।उलटि पलटि लंका सब जारि। फिर तो हनुमान जी के प्रताप व शनिदेव की दॄष्टि पड़ने पर लंका जल कर राख हो गई।इसके बाद राम- रावण यु़द्ध में रावण का अपने वंश सहित विनाश हो गया । बाद में हनुमान जी ने महाकाल और शनिदेवता को रावण के चंगुल से मुक्त करा दिया। हालांकि कुछ विद्वानों का मत है कि शनिदेव को संपूर्ण मुक्ति रावण की मृत्यु के बाद ही मिली थी ।तब शनिदेव हनुमान जी से बोले , “हे महावीर ! मैं आपका सदा ऋणी रहुंगा।” तब हनुमान जी ने शनिदेव दिव्य दॄष्टि प्रदान कर अपने रुद्र रुप के दर्शन कराये। उस समय शनिदेव ने हनुमान जी के चरण पकड़ लिए और प्रेम के अश्रु बहाने लगे। शनिदेव ने हनुमान जी से कहा कि प्रभु मैं आपके भक्तों को कभी भी पीडि़त नहीं करुंगा । जो मनुष्य इस कथा पढ़ेगा या श्रवण करेगा, मैं सदा उसकी रक्षा करुंगा।जय शनिदेव 🚩जय बजरंग बली 🚩जय श्रीराम 🚩प्रेम से बोलिये जय श्री राम
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*महाभारत का एक सार्थक प्रसंग जो अंतर्मन को छूता है .... !!*🙏🙏महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी .... ! गिद्ध , कुत्ते , सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में *द्वापर का सबसे महान योद्धा* *"देवव्रत" (भीष्म पितामह)* शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था -- अकेला .... !तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !!भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी , बोले , " आओ देवकीनंदन .... ! स्वागत है तुम्हारा .... !! मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !!कृष्ण बोले , "क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप" .... !भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ? उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... !कृष्ण चुप रहे .... !भीष्म ने पुनः कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ? बड़े अच्छे समय से आये हो .... ! सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....! एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ?कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...." भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! "कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले .... " कहिये पितामह .... !"भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?" "किसकी ओर से पितामह .... ? पांडवों की ओर से .... ?" " कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ? यह सब उचित था क्या .... ?" इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... ! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !! उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !! मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !! "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... ! मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !" "तो सुनिए पितामह .... ! कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... ! वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !""यह तुम कह रहे हो केशव .... ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ....? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ..... ? " *"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है .... !* हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है .... !! राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था .... ! हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह .... !!"" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो .... !"" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह .... ! राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था .... !! तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण जैसे सन्त हुआ करते थे ..... ! तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे .... ! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था .... !! इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया .... ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं .... !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह .... ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो .... !!" "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव .... ? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा .... ? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ..... ??"*" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह .... !* *कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा .... !* *वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा .... नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा .... !* *जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह* .... ! तब महत्वपूर्ण होती है विजय , केवल विजय .... ! *भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह* ..... !!""क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव .... ? और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ..... ?" *"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह .... !* *ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ..... !*केवल मार्ग दर्शन करता है* *सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है .... !* आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न .... ! तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ..... ? सब पांडवों को ही करना पड़ा न .... ? यही प्रकृति का संविधान है .... ! युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से .... ! यही परम सत्य है ..... !!"भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे .... ! उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी .... ! उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है .... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण .... !"*कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था* .... !*जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ....।।**धर्मों रक्षति रक्षितः* 🚩🚩
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जानिए रामायण का एक अनजान सत्य... केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे..क्या कारण था ?..पढ़िये पूरी कथा हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है। अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया । भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा ॥ अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥ ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥ लक्ष्मण ने उसका वध किया, इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥ श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥ अगस्त्य मुनि ने कहा- प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो..... (१) चौदह वर्षों तक न सोया हो, (२) जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो, और (३) चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥ श्रीराम बोले- परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा ॥ मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है ॥ अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे, लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो ॥ अगस्त्य मुनि ने कहा – क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ॥ लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा॥ प्रभु ने पूछा- हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?, फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ?, और १४ साल तक सोए नहीं ? यह कैसे हुआ ? लक्ष्मणजी ने बताया- भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥ आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं. चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए – आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे. मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था. निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥ निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥ आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था। अब मैं १४ साल तक अनाहारी कैसे रहा! मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे. एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥ आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे? मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥ सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥ फलों की गिनती हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥ प्रभु ने कहा- इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था? लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया- उन सात दिनों में फल आए ही नहीं :—१--जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥२--जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥३--जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे, ।४--जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे,।५--जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे,।६--जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी,७--और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥ इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥ विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- बिना आहार किए जीने की विद्या. उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥ भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया । जय सियाराम जय जय राम जय शेषावतार लक्ष्मण भैया की जय संकट मोचन वीर हनुमान की *जय श्री राम ⛳
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#घर_में रहते हुए हिन्दी बोलने का प्रयास करें...ये वो उर्दू के शब्द जो आप_हम प्रतिदिन प्रयोग करते हैं, इन शब्दों को त्याग कर मातृभाषा का प्रयोग करें... उर्दू हिंदी01 ईमानदार - निष्ठावान02 इंतजार - प्रतीक्षा03 इत्तेफाक - संयोग04 सिर्फ - केवल, मात्र05 शहीद - बलिदान06 यकीन - विश्वास, भरोसा07 इस्तकबाल - स्वागत08 इस्तेमाल - उपयोग, प्रयोग09 किताब - पुस्तक10 मुल्क - देश11 कर्ज़ - ऋण12 तारीफ़ - प्रशंसा13 तारीख - दिनांक, तिथि14 इल्ज़ाम - आरोप15 गुनाह - अपराध16 शुक्रीया - धन्यवाद, आभार17 सलाम - नमस्कार, प्रणाम18 मशहूर - प्रसिद्ध19 अगर - यदि20 ऐतराज़ - आपत्ति21 सियासत - राजनीति22 इंतकाम - प्रतिशोध23 इज्ज़त - मान, प्रतिष्ठा24 इलाका - क्षेत्र25 एहसान - आभार, उपकार26 अहसानफरामोश - कृतघ्न27 मसला - समस्या28 इश्तेहार - विज्ञापन29 इम्तेहान - परीक्षा30 कुबूल - स्वीकार31 मजबूर - विवश32 मंजूरी - स्वीकृति33 इंतकाल - मृत्यु, निधन 34 बेइज्जती - तिरस्कार35 दस्तखत - हस्ताक्षर36 हैरानी - आश्चर्य37 कोशिश - प्रयास, चेष्टा38 किस्मत - भाग्य39 फै़सला - निर्णय40 हक - अधिकार41 मुमकिन - संभव42 फर्ज़ - कर्तव्य43 उम्र - आयु44 साल - वर्ष45 शर्म - लज्जा46 सवाल - प्रश्न47 जवाब - उत्तर48 जिम्मेदार - उत्तरदायी49 फतह - विजय50 धोखा - छल51 काबिल - योग्य52 करीब - समीप, निकट53 जिंदगी - जीवन54 हकीकत - सत्य55 झूठ - मिथ्या, असत्य56 जल्दी - शीघ्र57 इनाम - पुरस्कार58 तोहफ़ा - उपहार59 इलाज - उपचार60 हुक्म - आदेश61 शक - संदेह62 ख्वाब - स्वप्न63 तब्दील - परिवर्तित64 कसूर - दोष65 बेकसूर - निर्दोष66 कामयाब - सफल67 गुलाम - दास68 जन्नत -स्वर्ग 69 जहन्नुम -नर्क70 खौ़फ -डर71 जश्न -उत्सव72 मुबारक -बधाई/शुभेच्छा73 लिहाजा़ -इसलीए74 निकाह -विवाह/शादि75 आशिक -प्रेमी 76 माशुका -प्रेमिका 77 हकीम -वैध78 नवाब -राजसाहब79 रुह -आत्मा 80 खु़दकुशी -आत्महत्या 81 इज़हार -प्रस्ताव82 बादशाह -राजा/महाराजा83 ख़्वाहिश -महत्वाकांक्षा84 जिस्म -शरीर/अंग85 हैवान -दैत्य/असुर86 रहम -दया87 बेरहम -बेदर्द/दर्दनाक88 खा़रिज -रद्द89 इस्तीफ़ा -त्यागपत्र 90 रोशनी -प्रकाश 91मसीहा -देवदुत92 पाक -पवित्र93 क़त्ल -हत्या 94 कातिल -हत्यारा95 मुहैया - उपलब्ध96 फ़ीसदी - प्रतिशत97 कायल - प्रशंसक98 मुरीद - भक्त99 कींमत - मूल्य (मुद्रा में)100 वक्त - समय101 सुकून - शाँति102 आराम - विश्राम103 मशरूफ़ - व्यस्त104 हसीन - सुंदर105 कुदरत - प्रकृति106 करिश्मा - चमत्कार107 इजाद - आविष्कार108 ज़रूरत - आवश्यक्ता109 ज़रूर - अवश्य110 बेहद - असीम111 तहत - अनुसारइनके अतिरिक्त हम प्रतिदिन अनायास ही अनेक उर्दू शब्द प्रयोग में लेते हैं ! कारण है ये बॉलीवुड और मीडिया जो एक इस्लामी षड़यंत्र के अनुसार हमारी मातृभाषा पर ग्रहण लगाते आ रहे हैं।जय श्री राम 🚩🚩
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रामायण में एक घास के तिनके का भी रहस्य है, जो हर किसी को नहीं मालूम क्योंकि आज तक हमने हमारे ग्रंथो को सिर्फ पढ़ा, समझने की कोशिश नहीं की।रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका मे सीता जी वट वृक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी। रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था, लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी। यहाँ तक की रावण ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को भ्रमित करने की भी कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी ने उससे कहा आप तो राम का वेश धर कर गये थे, फिर क्या हुआ?रावण बोला- जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी ।रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जिस जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका, उन्हें रावण भी कैसे समझ पाता !रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो,क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है? रावण के इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी और उनकीआँखों से आसुओं की धार बह पड़ी।इसकी सबसे बड़ी वजह थी किजब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ। बहुत उत्सव मनाया गया। *प्रथानुसार नव वधू विवाह पश्चात जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर घर में मिठास बनी रहे।* इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ एवं तीनों रानियों सहित चारों भाईयों और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे।माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया। सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली,सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी।ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया, जिसे माँ सीता जी ने देख लिया। लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें? ये प्रश्न आ गया। माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया। सीता जी ने सोचा 'अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा'।लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे। फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुचकर माँ सीता जी को बुलवाया ।फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ।आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना।आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना।इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी।*तृण धर ओट कहत वैदेही**सुमिरि अवधपति परम् सनेही**यही है उस तिनके का रहस्य* ! इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी, लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही !ऐसी विशलहृदया थीं हमारी जानकी माता !🌺🙏🌺जय श्री राम 🌺🙏🌺
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*ज़िंदगी में सिर्फ़ " शहद " ही ऐसा पदार्थ है जिसको सौ साल के बाद भी खाया जा सकता है,* *और "शहद " जैसी बोली से सालों साल तक लोगों के दिलों में राज किया जा सकता है।*
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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का आधिकारिक लोगो जारी .....
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श्री हनुमान जी महाराज, श्री हनुमान गढ़ी अयोध्या धाम के आज 08-04-2020 के अद्भुत एवं अलौकिक दर्शन.. श्री हनुमान जी की कृपा आप सभी पर बनी रहे.. ऐसी मंगल कामना…!!!
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*🙏🌹जय श्री महाकाल 🌹🙏* *श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का आज का भस्म आरती श्रृंगार दर्शन* *🔱5 अप्रैल 2020 ( रविवार )🔱*
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*दौलत सिर्फ रहन सहन का* *स्तर बदल सकती है* *बुद्धि,नियत और तक़दीर नही।* *जय श्री कृष्णा* 👏
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✍🏻बुरी आदतें अगर वक़्त पर ना बदलीं जायें, तो वो आदतें आपका वक़्त बदल देती हैं।
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श्रीराम अवतार : त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। उससे देवता भी डरते थे। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने अनेक राक्षसों का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया। पिता के कहने पर वनवास गए। वनवास भोगते समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण कर ले गया। सीता की खोज में भगवान लंका पहुंचे, वहां भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया।
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*"बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है"* *"मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है"* *"सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल"* *"यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है"* *"ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो"* *"क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है"* *"दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी"* *"यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है"* ......✍🏻
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सौ बार जन्म लेंगे हे "प्यारे " फिर भी हम तुमको ना छोड़ेंगे , तुम्हे दिल ने पुकारा हे एक बार चले आओं मेरे श्याम मेरी ज़िन्दगी
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*कैकैयी ऐक अनदेखा पहलू* राजा दशरथ की तीसरी पत्नी कैकेयी भगवान राम से अपने बेटे भरत से भी ज्यादा प्रेम करती थीं। उन्हें राम से बहुत आशाएं थीं। जब कैकेयी ने भगवान राम से 14 वर्षों का वनवास मांगा था तब सबसे ज्यादा भरत हैरान हुए थे क्योंकि वह जानते थे कि माता राम से कितना प्रेम करती हैं। लेकिन आपको जानाकर हैरानी होगी कि देवताओं ने कैकेयी से यह काम करवाया था। इसके पीछे एक रोचक कथा है। कैकेयी ने चौहद वर्ष का वनवास मांगकर यह समझाया कि अगर व्यक्ति युवावस्था में चौदह यानी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नाक, आंख, जीभ, त्वचा) पांच कर्मेन्द्रियां (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ) तथा मन, बुद्धि, चित और अहंकार को वनवास (एकान्त आत्मा के वश) में रखेगा तभी अपने अंदर के घमंड और रावण को मार पाएगा। दूसरी बात यह था कि रावण की आयु में केवल 14 ही वर्ष शेष थे। प्रश्न उठता है कि यह बात कैकयी कैसे जानती थी? ये घटना घट तो रही थी अयोध्या में लेकिन योजना देवलोक की थी। कोप भवन में कोप का नाटक हुआ था। कैकेयी को राम पर भरोसा था लेकिन दशरथ को नहीं था। इसलिए उन्होंने पुत्र मोह में अपने प्राण गंवा दिए और कैकेयी हर जगह बदनाम हो गईं। “अजसु पिटारी तासु सिर, गई गिरा मति फेरि।” सरस्वती ने मंथरा की मति में अपनी योजना डाल दी, उसने कैकयी को वही सब सुनाया, समझाया और कहने को उकसाया जो सरस्वती को करवाना चाहती थीं। इसके सूत्रधार स्वयं श्रीराम थे, उन्होंने ही यह योजना तैयार की थी। माता कैकयी यथार्थ जानती हैं। जो नारी युद्ध भूमि में दशरथ के प्राण बचाने के लिए अपना हाथ रथ के धुरे में लगा सकती है, रथ संचालन की कला में दक्ष है, वह राजनैतिक परिस्थितियों से अनजान कैसे रह सकती है? कैकेयी चाहती थी कि मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैल जाए और यह बिना तप और विन रावण वध के संभव नहीं था। कैकेयी जानती थीं कि अगर राम अयोध्या के राजा बन जाते तो रावण का वध नहीं कर पाएंगे, इसके लिए वन में तप जरूरी थी। कैकयी चाहती थीं कि राम केवल अयोध्या के ही सम्राट न बनकर रह जाएं, वह विश्व के समस्त प्राणियों के हृदयों के सम्राट भी बनें। उसके लिए राम को अपनी साधित शोधित इन्द्रियों तथा अन्तःकरण को तप के द्वारा तदर्थ सिद्ध करना होगा। रामायण और महाभारत दोनों में ही 14 वर्ष वनवास की बात हुई है। रामायण में भगवान को 14 वर्ष का वनवास भोगना पड़ा था। जबकि महाभारत में पांडवों को 13 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास में गुजारना पड़ा था। दरअसल इसके पीछे ग्रह गोचर भी मानते हैं। उन दिनों मनुष्य की आयु आज के जमाने से काफी ज्यादा होती थी। इसलिए ग्रहों की दशावधि भी ज्यादा होती थी। शनि चालीसा में लिखा है ‘राज मिलत बन रामहि दीन्हा। कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।’ यानी शनि की दशा के कारण कैकेयी की मति मारी गई और भगवान राम को शनि के समयावधि में वन-वन भटकना पड़ा और उसी समय रावण पर भी शनि की दशा आई और वह राम के हाथों मारा गया। यानी शनि ने अपनी दशा में एक को कीर्ति दिलाई तो दूसरे को मुक्ति। जबकि सत्य तो यह है माता कैकयी ने ही स्वयं सारा कलंक लेकर राम को भगवान श्री राम बनाया। नमन है माता कैकेयी को🙏🏻
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*🙏🌹जय श्री महाकाल 🌹🙏* *श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का आज का भस्म आरती श्रृंगार दर्शन* *🔱4 अप्रैल 2020 ( शनिवार )🔱*
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अनमोल वचनः जब तक मन में ईर्ष्या,नफरत, बैर है, तब तक मंदिर,गुरुद्वारा, मस्जिद,चर्च जाना केवल एक सैर है !!
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*🌸🌴‼श्रीकृष्ण ‼🌴🌸* *श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,* *हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!* *༺꧁ Զเधॆ Զเधॆ꧂༻* *‼जय श्री कृष्णा‼* *कृष्ण जी कहते हैं.....* *गलती होने पर सॉरी काम करता है,* *लेकिन भरोसा टूटने पर नहीं।* *इसलिए जीवन में गलतियाँ करें* *लेकिन विश्वास कभी न तोड़ें।* *क्योंकि क्षमा करना आसान है,* *लेकिन फिर से भूलना और भरोसा करना कभी-कभी असंभव होता है।* ╲\╭┓ ╭☆ ╯ ┗╯\╲☆** *🌸🌴राधे राधे....*
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🌷🌿🙏🏼 *प्रेमस्वरूपिणी श्रीराधा*🙏🙏 एकबार राधारानी ने जैसे ही मंजरी मुखसे ये सुना कि श्यामसुंदर संकेतकुंज में उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं , तो अत्यंत अधीर हो राधारानी तत्काल कुंज की ओर चल पड़ी अभिसार के लिए जाते समय राधारानी को कुछ भी ख्याल नही था,विभ्रम की स्थिति है 【विभ्रम अनुभाव में नायिका प्रियतम से मिलने के आवेश में कपड़े गहने उलट पुलट पहनकर ही अभिसार के लिए चल पड़ती है जैसे रास से पहले गोपियाँ चल पड़ी थीं,काजल होठों पर लगाकर,बाजूबंद पैरों में पहनकर....】 अत्यंत तीव्र गति से राधारानी आगे बढ़ रही है।मंजरी पीछे छूट रही है... राधारानी की तुलना श्रीपाद ने तीव्रगामी गंगा जी से की है,जो कांत-समुद्र के मिलन को द्रुत गति से आगे बढ़ रही है मंजरी सोच रही है कि- "अंधेरी वर्षाकालीन रात्रि है। पंकिल भूमि पर चलना तो दूर,एक पैर रखना भी मुश्किल हो रहा है, स्वामिनी इतनी तेजीसे जा रही है..." अचानक राधारानी की गति धीमी हुई ,उन्होंने नज़र पैरों पर डाली..चरण पंकिल भूमि में धंस रहे थे..कीचड़ उनके नूपुरों तक आ रहा था... अचानक नज़र पड़ी ...ये क्या.. एक सर्प उनके नूपुरों से लिपटा हुआ था... अभिसार को निकली राधारानी को कौन सर्प रोक सकता था,वो वैसे ही कुंज की ओर चल पड़ीं... कुंज में पहुंची ही थी कि श्यामसुंदर ने अत्यंत प्रसन्नता के साथ आगे बढ़कर उनका आह्वान किया "राधे तुम आ गई..मुझे क्षमा करो ,मैंने स्वार्थवश इतनी रात्रि में तुम्हें बुलाया...तुम्हे कष्ट हुआ होगा..." श्यामसुंदर समझ गए कि प्रेम अधीर राधारानी तीव्र गति से आई है... श्यामसुंदर ने उनके कंधे के उपरसे देखा..मंजरी पीछे छूट गई है... तभी श्यामसुंदर की नज़र राधारानी के नूपुरों पर पड़ी वो चौकें... "ये क्या राधे!!!..सर्प..?तुम्हें कुछ भी होश नहीं..." राधारानी मुस्कुराई- "मैं जानती हूं सर्प है,मैंने देखा था" श्यामसुंदर बोले- "फिर भी तुम इसे लेकर चली आई!!!..तुमने तो सपेरे से सर्प वशीकरण मंत्र सीखा है...तुमने इसे वहीं वनमे क्यों नहीं छोड़ दिया?" राधारानी ने पुनः मुस्कुराकर कहा- "आपको इसकी सेवा दिख नहीं रही..मुझे दिख रही है "आज अभिसार की उत्कंठा में मैने एक ही नूपुर को कपड़े से बांधा था,ताकि वो न बजे,दूसरा बांधना भूल गई थी... "आप ही तो कहते यह कि राधे तुम्हारे नूपुरों की झंकार से दिशाएं डोल जाती हैं... "दास की भांति ये सर्प मेरे नूपुरों से लिपटा रहा ताकि वो बज न पाए,किसीको मेरे अभिसार का भेद न खोल दे.. "दास को छोड़ आऊं..?ये मुझसे कभी नहीं होगा" श्यामसुंदर निर्वाक होकर बड़ी बड़ी आंखे कर आश्चर्य से राधारानी की बातें सुन रहे मंजरी सुनकर पल पल बलिहारी जा रही वास्तव में कोई छोटी सी सेवा, हो सकता है, श्यामसुंदर के नज़रों से चूक जाए... पर भाव प्रेम से की गई छोटी से छोटी सेवा भी राधारानी की नज़रों से नहीं चूकती चूके कैसे..? भाव और प्रेम तो वो स्वयम है जयजय श्रीराधे🙌🏼लाडली लाल की जय हो🙌🏼 जयजयश्रीश्री राधेश्याम🙏🏼🙇🏻♂🌹 ¸.•*""*•.¸ Զเधे Զเधे ....... 🌀🍂🌀🍂🌀🍂🌀🍂🌀🍂
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किसी ने 25 करोड़ दिए, किसी ने 50 तो किसी ने 100 करोड़ मगर पुलिस, डॉक्टर और सफाई कर्मियों ने तो अपनी जिंदगी ही दान में दे दी
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*रामायण में भोग नहीं, त्याग है* *भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।* *एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ?* *मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया ।* *श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं ।* *माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ?* *शत्रुघ्न कहाँ है ?* *श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।* *उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप गया ।* *तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।* *आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?* *अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।* *माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में* *हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने* *आँखें* *खोलीं, माँ !* *उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।* *माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"* *शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?* *माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।* *देखो यह रामकथा हैं...* *यह भोग की नहीं त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा* *चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।* *रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।*🌸🌸🌸ॐ नमों नारायणय 🌸🌸🌸 भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!! यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।" लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!! लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया। मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं। यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?? हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा। वे बोलीं- " मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा। इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।" राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं... कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया । 🙏💐 *" जय श्रीराम"* 💐🙏
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भगवान् के लिए रोना कैसे आये? रोना तब आता है जब हम परमात्मा के लिए अति व्याकुल हो जाएँ। व्याकुलता आती है तब जब उनके बिना रहा न जाये। उनके बिना कब रहा नहीं जायेगा? जब यह एहसास होगा कि संसार में उनके सिवाय मेरा और कोई है ही नहीं। मैं यहाँ नितांत अकेला हूँ। एक वो ही मेरे हैं। केवल एक भगवान ही अपने तब लगेंगे जब संसार का दूसरा कोई भी व्यक्ति अपना नहीं लगेगा। जब तक संसार में एक भी व्यक्ति में अपनापन है तब तक भगवान् के लिए व्याकुलता आएगी ही नहीं। "मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई" हम लोग इसपे तो ध्यान देते हैं कि "मेरे तो गिरिधर गोपाल" परंतु उसके बाद के शब्द "दूसरो न कोई" पे ध्यान नहीं देते। "दूसरो न कोई" पे ध्यान देना है। इसको धारण करना है जीवन में। तभी गिरिधर गोपाल सच में अपने लगेंगे। इसीलिए जब संसार के लोग हमें दुःख दे, अपमान करें, तब इसमें प्रभु की असीम कृपा देखनी चाहिए कि वह हमें स्मरण करा रहे हैं कि संसार में कोई अपना नहीं है। जब तक दूसरों से सुख मिलता रहता है तब तक उनसे अपनापन नहीं छूटता। अपनापन तो दुःख में ही मिट सकता है। जब दुःख आये तब यह याद रखें की संसार में कोई अपना नहीं। ऐसा करना दुःख का सदुपयोग करना है। संसारी व्यक्ति तो दुःख का भोग करते हैं। परंतु साधक दुःख का सदुपयोग करे।
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आज की कहानी उनके लिए जो सभी सुख, संपत्ति और असंख्य धन कमाना चाहते है, परंतु फिर कैसी दशा होती है इस कहानी से सीखे...... धन की इच्छा रखने वालो प्यारे यह कहानी आप के लिए... जरूर पढ़े एक आदमी के घर एक संन्यासी मेहमान ने कहा कि तुम यहाँ क्या छोटी-मोटी खेती में लगे हो। साइबेरिया में मैं यात्रा पर था तो वहाँ जमीन इतनी सस्ती है मुफ्त ही मिलती है। तुम यह जमीन छोड़-छाड़कर, बेच-बाचकर साइबेरिया चले जाओ। वहाँ हजारों एकड़ जमीन मिल जाएगी इतनी जमीन में। वहाँ करो फसलें और बड़ी उपयोगी जमीन है और लोग वहाँ के इतने सीधे-सादे हैं कि करीब-करीब मुफ्त ही जमीन दे देते हैं। उस आदमी को लालच जगी। उसने दूसरे दिन ही सब बेच-बाचकर साइबेरिया की राह पकड़ी। उसने पहुंचकर पूछा कि मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ। तो उन्होंने कहा, जमीन खरीदने का तुम जितना पैसा लाए हो, रख दो; और बेचने का तरीका है कि कल सुबह सूरज के ऊगते तुम निकल पड़ना और साँझ सूरज के डूबते तक जितनी जमीन तुम घेर सको घेर लेना। साँझ सूरज के डूबते-डूबते उसी जगह पर लौट आना जहाँ से चले थे- बस यही शर्त है। जितनी जमीन तुम चल लोगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी। रात-भर तो सो न सका वह आदमी। तुम भी होते तो न सो सकते;रातभर योजनाएँ बनाता रहा कि कितनी जमीन घेर लूँ। सुबह ही भागा। गाँव इकट्ठा हो गया था। सुबह का सूरज ऊगा, वह भागा। उसने साथ अपनी रोटी भी ले ली थी, पानी का भी इंतजाम कर लिया था। रास्ते में चलते ही चलते खाना भी खा लूँगा, पानी भी पी लूँगा। रुकना नहीं है; चलना क्या है; दौड़ना है। दौड़ना शुरू किया, क्योंकि चलने से तो आधी ही जमीन कर पाऊँगा, दौड़ने से दुगनी हो सकेगी – भागा …भागा। सोचा था कि ठीक बारह बजे लौट पड़ूँगा; ताकि सूरज डूबते – डूबते पहुँच जाऊँ। बारह बज गए, मीलों चल चुका है, मगर लालच का कोई अंत है? उसने सोचा कि बारह तो बज गए, लौटना चाहिए; लेकिन सामने और उपजाऊ जमीन, और उपजाऊ जमीन…थोड़ी सी और घेर लूँ। जरा तेजी से दौड़ना पड़ेगा लौटते समय – इतनी ही बात है, एक ही दिन की तो बात है, और जरा तेजी से दौड़ लूँगा। उसने पानी भी न पीया; क्योंकि रुकना पड़ेगा उतनी देर – एक दिन की ही तो बात है, फिर कल पी लेंगे पानी, फिर जीवन भर पीते रहेंगे। उस दिन उसने खाना भी न खाया। रास्ते में उसने खाना भी फेंक दिया, पानी भी फेंक दिया, क्योंकि उनका वजन भी ढोना पड़ा रहा है, इसलिए दौड़ ठीक से नहीं पा रहा है। उसने अपना कोट भी उतार दिया, अपनी टोपी भी उतार दी, जितना निर्भार हो सकता था हो गया। एक बज गया, लेकिन लौटने का मन नहीं होता, क्योंकि आगे और-और सुंदर भूमि आती चली जाती है। मगर फिर लौटना ही पड़ा; दो बजे तक वो लौटा। अब घबड़ाया। सारी ताकत लगाई; लेकिन ताकत तो चुकने के करीब आ गई थी। सुबह से दौड़ रहा था, हाँफ रहा था, घबरा रहा था कि पहुँच पाऊँगा सूरज डूबते तक कि नहीं। सारी ताकत लगा दी। पागल होकर दौड़ा। सब दाँव पर लगा दिया। और सूरज डूबने लगा…। ज्यादा दूरी भी नहीं रह गई है; लोग दिखाई पड़ने लगे। गाँव के लोग खड़े हैं और आवाज दे रहे हैं कि आ जाओ, आ जाओ! उत्साह दे रहे हैं, भागे आओ! अजीब सीधे-सादे लोग हैं – सोचने लगा मन में; इनको तो सोचना चाहिए कि मैं मर ही जाऊँ, तो इनको धन भी मिल जाए और जमीन भी न जाए। मगर वे बड़ा उत्साह दे रहे हैं कि भागे आओ! उसने आखिरी दम लगा दी – भागा – भागा…। सूरज डूबने लगा; इधर सूरज डूब रहा है, उधर वो भाग रहा है…। सूरज डूबते – डूबते बस जाकर गिर पड़ा। कुछ पाँच – सात गज की दूरी रह गई है, घिसटने लगा। अभी सूरज की आखिरी कोर क्षितिज पर रह गई. घिसटने लगा। और जब उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुँचा, जहाँ से भागा था, उस खूँटी पर, सूरज डूब गया। वहाँ सूरज डूबा, यहाँ यह आदमी भी मर गया। इतनी मेहनत कर ली! शायद हृदय का दौरा पड़ गया। और सारे गाँव के सीधे – सादे लोग जिनको वह समझाता था, हँसने लगे और एक – दूसरे से बात करने लगे! ये पागल आदमी आते ही जाते हैं! इस तरह के पागल लोग आते ही रहते हैं! यह कोई नई घटना न थी; अक्सर लोग आ जाते थे खबरें सुनकर, और इसी तरह मरते थे। यह कोई अपवाद नहीं था; यही नियम था। अब तक ऐसा एक भी आदमी नहीं आया था, जो घेरकर जमीन का मालिक बन पाया हो। यही तो तुम कर रहे हो प्यारे – दौड़ रहे हो कि कितनी जमीन घेर लें! लौटने का भी समय होने लगता है – मगर थोड़ा और दौड़ लें! न भूख की फिक्र है, न प्यास की फिक्र है। जीने का समय कहाँ है; पहले जमीन घेर लें, तिज़ोरी भर लें,रुपया इकट्ठा हो, फिर बाद में जी लेंगे, एक ही दिन का तो मामला है। और कभी कोई नहीं जी पाता।जीवन मुफ्त नहीं मिलता सदैव प्रसन्न रहिये!!! जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!!
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